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बिस्मिल्लाह खान: जो अल्लाह से वास्तविक सुर की तलाश करते थे

1 दिसंबर 2024 – बिस्मिल्लाह खान भारतीय संगीत के अनमोल रत्न थे, जिनके बिना भारतीय इतिहास अधूरा रहेगा। वे भारत की संस्कृति, संप्रभुता, और विविधता का प्रतीक थे, और उनकी शहनाई संगीत में ईश्वर की भक्ति का रूप मानी जाती थी। उनका जीवन हमेशा सच्चे सुर की खोज में रहा, और उन्होंने अपनी शहनाई के जरिए संगीत को एक अलौकिक साधना के रूप में प्रस्तुत किया।

बिस्मिल्लाह खान ने अपने जीवन के अधिकांश वर्ष बनारस में बिताए, जहाँ वे गंगा नदी के किनारे शहनाई की तानें लगाते थे। उनकी सुबह की शुरुआत गंगा स्नान और मस्जिद में नमाज से होती, और फिर वे घंटों तक बालाजी मंदिर के आंगन में शहनाई का अभ्यास करते। उनका परिवार भी संगीत के क्षेत्र में था, और वे हमेशा इस कला की सेवा करते रहे।

बिस्मिल्लाह खान का मन पढ़ाई में नहीं लगता था, लेकिन उनके मामा अली बख्श ने उन्हें शहनाई सिखाई। धीरे-धीरे वे शहनाई और गायन में माहिर हो गए। वे संगीत को अत्यंत पवित्र मानते थे और मानते थे कि समाज के भेद सुरों में मिट जाते हैं। वे कट्टरपंथियों से कहते थे कि संगीत और इबादत का रास्ता एक ही है। उनका विश्वास था कि अजान और कव्वाली भी संगीत ही हैं, और संगीत कभी धर्म के खिलाफ नहीं हो सकता।

उनकी शहनाई का जादू न सिर्फ भारत में, बल्कि विदेशों में भी फैल गया था। उन्हें पद्म पुरस्कारों, संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार और भारत रत्न जैसे सम्मान प्राप्त हुए। उनके संगीत में बनारस का प्रेम झलकता था, और वे हमेशा कहते थे कि जहां भी वे जाएं, बनारस उनका पीछा करता है।

बिस्मिल्लाह खान ने हिन्दी सिनेमा में भी योगदान दिया था, लेकिन वे फिल्मी संगीत के तरीकों से असंतुष्ट थे और उन्होंने इस दिशा में कोई कदम नहीं बढ़ाया। वे हरियाणा के लाल किले में शहनाई की मांगलिक धुनों के साथ देशभक्ति के जज्बे को भी जगाते थे। उनका संगीत हमेशा ऊंचे आदर्शों और संस्कृति का प्रतीक बना।

उनकी एकाग्रता की मिसाल भी दी जाती थी। एक बार एक कार्यक्रम में बिजली चली गई, लेकिन बिस्मिल्लाह खान बिना किसी फर्क के शहनाई बजाते रहे, जब तक आयोजकों ने लाइट नहीं जलाई। उनका यह समर्पण और संगीत के प्रति श्रद्धा उन्हें महान उस्ताद बनाती है।

बिस्मिल्लाह खान को लता मंगेशकर और बेगम अख्तर के संगीत से गहरा प्रेम था। वे अक्सर लता मंगेशकर के गायन को सुनते और बेगम अख्तर की गज़ल “दीवाना बनाना है तो” के दीवाने थे।

भारत रत्न मिलने पर उन्होंने कहा था कि यह एक सम्मान की बात है, लेकिन उन्होंने इस दौरान भारतीय कलाकारों के लिए वित्तीय सहायता की जरूरत का भी उल्लेख किया था। वे समझते थे कि कला और सम्मान का असली मूल्य तभी है जब सरकार कलाकारों के जीवनयापन के लिए कुछ ठोस कदम उठाए।

बिस्मिल्लाह खान के निधन के बाद उनके घर से पांच शहनाइयाँ चोरी हुईं, जो बाद में उनके पोते के द्वारा उधारी चुकाने के लिए बेची गईं। यह घटना दुखद थी, क्योंकि इसने भारतीय धरोहरों के महत्व को फिर से रेखांकित किया कि हमें अपनी सांस्कृतिक धरोहरों को संभालकर रखना चाहिए।

आज बिस्मिल्लाह खान की पुण्यतिथि पर, हम उन्हें याद करते हैं और उनकी संगीत साधना के प्रति श्रद्धा व्यक्त करते हैं।

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