कांगड़ा 09 दिसंबर 2024 : हिमाचल प्रदेश न सिर्फ देवी देवताओं की धरती है बल्कि यहां संस्कृति का भी ऐसा संग्रह है जो सदियों से संजोया जा रहा है. हिमाचल प्रदेश के जिला कांगड़ा के लोक नृत्य झमाकड़ा की ही बात कर लें तो आज भी झमाकड़ा शादी विवाह में मुख्य आकर्षण का केंद्र रहता है. यह लोक नृत्य आज भी स्कूलों में छात्राओं द्वारा प्रस्तुत किया जाता है और अपनी संस्कृति को सहेजने की ओर कुछ इस तरह कदम बढ़ाया जाता है.
कैसे होता है झमाकड़ा
शादी में जहां मामा औली में पानी लेकर खड़ा होता है, उस औली वो पानी होता है जिसे मामे द्वारा तड़के भरा गया होता है. गोत्रने उस पानी को डूने में भरकर लाती हैं और उसे लड़के या लड़की के पैरों में उडेलती हैं. उसी समय दादकिये पक्ष की औरतें आटे का एक मानवनुमा छोटा सा बुत बनाकर उसे नानकियों पक्ष की औरतों को दिखाती, चिढ़ाती गाना शुरू करती हैं – “नानू गोरे आया वो, झमाकड़ेया- झमाकड़ेया नंगा नाल़ा आया वो, झमाकड़ेया-झमाकड़ेया इन्हां धीयां जो शरम नीं आई वो, झमाकड़ेया-झमाकड़ेया” आगे नाम लेकर गाया जाता है- “दिख वो दुर्गेशा नानू तेरा आयाधरती जो मूछां, आसमाने जो दाढ़ीरेही जांदियां मूछां, ता उडी जांदी दाढ़ी नानू गोहरे आया वो झमाकड़ेया -झमाकड़ेया.”
जिसके हाथ आटे का बुतड़ू जाता है वह जीत जाता है
नानकिये पक्ष की महिलाएं यह सब सुनकर मैदान में आ जाती हैं. आटे के बने नानू को छीनने का प्रयास करती हैं और शुरु होता है झमाकड़ा-झमाकड़ा वे, झमाकड़ा बोल्दा नचणे जो, नचाणे जो लेई जाणे जो, नीं बसने जो, झमाकड़ा वे, खूब नृत्य होता है. नानकियों, दादकियों पक्ष की औरतें अपने अपने गीत, अपना अपना नृत्य दिखाती हैं, नानू के लिये छीना झपटी भी चलती रहती है. अंत में जिस पक्ष का पलड़ा भारी रहता है, जिसके हाथ आटे का बुतड़ू जाता है, वो गाता है – “जित्तेया, जित्तेया वेनानकियां दा दुध जित्तेया वेहरी गईयां गवारां दीयां, जित्ति गईया़ सरदारां दीयां.”
यह कुछ कांगड़ी बोली के शब्द हैं जो शायद आपको समझ न आएं लेकिन यह संस्कृति सबका मन मोह ही लेती हैं. इस परम्परा को आज भी जीवित रखने में महिलाओं का बहुत बड़ा योगदान है क्योंकि यह सारा संस्कृति का समागम उन्हीं के कंधों पर चलता है और वही इसमें अहम भूमिका निभाती हैं. कांगड़ा के साथ साथ हमीरपुर और बिलासपुर जिला में भी इस परंपरा को निभाया जाता है.