• Wed. Jan 22nd, 2025

ताड़पत्र पर कृष्ण जीवनी: ओड़िशा के कलाकारों का अद्भुत हुनर

भोपाल 09 दिसंबर 2024 : कला किसी पहचान की मोहताज नहीं होती है और इसका जीता जागता नमूना राजधानी के भोपाल हाट बाजार में देखने को मिल रहा है. नाबार्ड द्वारा भोपाल हाट में लगाए गए ग्रामीण मेले में आए ओड़िशा के कलाकारों ने ताड़ के पत्तों और तसर सिल्क के कपड़ों पर पट्टचित्र किया है. साथ ही यहां नारियल और सुपारी से बने वॉल हैंगिंग, पिंक मार्बल व लकड़ियों से बनी मूर्तियां और फ्रेम भी देखने को मिल जाता है.

वैसे तो देश में पारंपरिक कला के कई रूप देखने को मिलते हैं. जिनमें से एक प्राचीन कला पट्टचित्र चित्रकला है. कहा जाता है कि यह कला प्राचीन ओड़िशा के मंदिरों और धार्मिक स्थानों से जुड़ी हुई है. जो अपनी अद्वितीयता और धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण चित्रण के लिए प्रसिद्ध है. पट्टचित्र को जी आई टैग भी प्राप्त है.

भोपाल हाट में पट्टचित्र के नमूने
राजधानी में नाबार्ड द्वारा भोपाल हाट में ग्रामीण मेला लगाया गया है. यहां पर ओड़िशा के स्टाल में पट्टचित्र के नमूने देखने को मिल जाएगी. यहां पर कारीगर और विक्रेता रतिरंजन बारित द्वारा ताड़ के पत्तों और तसर सिल्क के कपड़ो पर बनी पट्टचित्र, नारियल और सुपाडी से बने वॉल हैंगिंग और पिंक मार्बल और लकडिय़ों से बनी मूर्तियों और फ्रेम का स्टाल लगाया गया है.

सुई की मदद से पत्तों पर चित्रकारी
लोकल 18 से बात करते हुए रतिरंजन ने बताया कि पट्टचित्र ओड़िशा की प्रसिद्ध कलाओं में से एक है, जिसमें सुई की मदद से काफी बारीक काम किया जाता है. ताड़ (पाल्म) के पत्तों पर चित्र बनाना आसान नहीं होता है. इसे बनाने के लिए अलग प्रकार की सुई आती है, जिसकी मदद से चित्रकारी की जाती है.

चार महीने का लगता है समय
मेले की सबसे महंगी चित्र को बनाने में चार महीने का समय लगा था, जिसकी कीमत 25,000 रुपए है. इस चित्र के माध्यम से श्री कृष्ण की जीवनी का वर्णन किया गया है. इसमें इस्तेमाल किए गए रंग पक्के और प्राकृतिक होते हैं. पट्टचित्र में देवी-देवताओं, महाभारत, रामायण, और भगवान जगन्नाथ की कथाओं का चित्रण होता है. इसका उपयोग पूजा और धार्मिक कार्यों में भी किया जाता है.

पत्तों पर रच डाली धार्मिक कथाएं
ओड़िशा के पट्टचित्र न केवल भारत में बल्कि विश्व में भी काफी प्रसिद्ध हैं. इसकी विशेषता इस पर बनाई धार्मिक कथाएं हैं. 4 महीने में तैयार श्री कृष्ण लीला में उनके जन्म से लेकर मृत्यु तक की कहानी को चित्र के माध्यम से दर्शाया गया है. इन कलाकारों ने अपनी संस्कृति को सहेज कर रखा हैं.

सालों से कर रहे हैं काम
पुरी से आए विक्रेता रतिरंजन बारित ने बताया कि वो अपने पूरे परिवार के साथ मिल कर पिछले 12 सालों से ये काम कर रहे हैं. उन्होंने पुरी के इंस्टीट्यूट से 5 साल का कोर्स भी किया है. पट्टचित्र के साथ नारियल पर की आकृति भी ओड़िशा में लोकप्रिय है. जिसे शुभ माना जाता है.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *