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एक देश, एक चुनाव’ से पहले ‘एक देश, एक शिक्षा और एक स्वास्थ्य प्रणाली’ सुनिश्चित करे केंद्र: भगवंत सिंह मान

मुख्यमंत्री ने कहा, केंद्र सरकार की यह चाल राजनीति से प्रेरित है, जिसका जनकल्याण से कोई लेना-देना नहीं

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नई दिल्ली, 12 दिसंबर-

पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान ने आज यहां कहा कि ‘एक देश, एक चुनाव’ से पहले केंद्र सरकार को ‘एक देश, एक शिक्षा और एक देश, एक स्वास्थ्य प्रणाली’ को सुनिश्चित करना चाहिए।

आज यहां संसद भवन के बाहर पत्रकारों से बातचीत करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि यह हैरानी की बात है कि मोदी सरकार देश में ‘एक देश, एक शिक्षा’ और ‘एक देश, एक इलाज प्रणाली’ लागू करने के बजाय ‘एक देश, एक चुनाव’ की प्रक्रिया को लागू करने के लिए तत्पर है। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार जानबूझकर यह चाल चल रही है क्योंकि जहां ‘एक देश, एक शिक्षा’ और ‘एक देश, एक इलाज प्रणाली’ लागू करने से पूरे देश की जनता को लाभ होगा, वहीं ‘एक देश, एक चुनाव’ लागू करने से भाजपा के राजनीतिक मंसूबे पूरे होंगे। भगवंत सिंह मान ने कहा कि यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि मोदी सरकार जनकल्याण की बजाय अपनी भलाई सुनिश्चित करने के लिए प्रयासरत है। उन्होंने इसे तानाशाही रवैया बताया, जो क्षेत्रीय पार्टियों और राज्यों के हित में नहीं है।

मुख्यमंत्री ने कहा कि पंजाब महान गुरुओं, संतों-महापुरुषों और पीरों-फकीरों की पवित्र धरती है, जिन्होंने हमें आपसी प्रेम और सहिष्णुता का मार्ग दिखाया है। भगवंत सिंह मान ने कहा कि राज्य सरकार अकाली नेता सुखबीर सिंह बादल पर गोली चलाने की दुर्भाग्यपूर्ण घटना की पहले ही जांच कर रही है और जल्द ही इस साजिश का पर्दाफाश होगा। उन्होंने कहा कि शिरोमणि कमेटी ने कई कारणों का हवाला देकर, जिनके बारे में उन्हें ही बेहतर जानकारी है, श्री हरमंदिर साहिब परिसर की सीसीटीवी फुटेज देने से इनकार कर दिया और पंजाब पुलिस को जांच में सहयोग नहीं दिया। उन्होंने कहा कि अब जब फुटेज प्राप्त हो गई है, तो जांच में तेजी लाई जाएगी।

मुख्यमंत्री ने कहा कि यह बहुत गर्व और संतोष की बात है कि उनकी पार्टी को संसद भवन में कार्यालय मिला है। उन्होंने देश की संसद में सांसद के रूप में अपने कार्यकाल को याद करते हुए कहा कि इस मंच का उपयोग जनहित के मुद्दों को प्रभावी ढंग से उठाने के लिए किया जाना चाहिए। भगवंत सिंह मान ने कहा कि केंद्र सरकार को व्यापक जनहित में विपक्षी दलों के नेताओं को संसद में सार्वजनिक मुद्दे उठाने की अनुमति देनी चाहिए।

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