अबोहर के आभा नगरी होने की यदि कोई पहचान बाकी है तो वह है पंजपीर की मजार। हिन्दू मुस्लिम आस्था के प्रतीक पांच पीरों की इस मजार के अस्तित्व की कहानी जितनी प्राचीन है उतनी दिलचस्प भी। पांच पीरों की मजार पर हर वर्ष 15 सावन अर्थात 30 जुलाई को भारी मेला लगता है। पांच पीरों के इतिहास के अनुसार स्थानीय धर्म नगरी पर स्थित एक बहुत बड़ा टीला हुआ करता था जो आज थेह के नाम से जाना जाता है। कभी यह राजा बाबा चंदनी का महल था जो आबू नगरी व आभा नगरी कहलाता था। जन श्रुति अनुसार सूर्यवंशी राजा बाबा चंदनी के बाद राजा हरीचंद ने राज-पाठ संभाला, राजा हरीचन्द की केवल एक बेटी ही थी। आखिरी समय में राजा को कोढ़ हो गया। शाही हकीमों के इलाज भी बेअसर साबित हुए। किसी ने राजा को सलाह दी कि मुलतान (पाकिस्तान) के पांच पीरों के घोड़ों के खून से इस बीमारी का इलाज संभव है। शहजादी को जब इस बात का पता चला तो वह राजस्थान के सूरतगढ़ के ठाकुर की मदद से पांच पीरों के पास गई, मांगने पर घोड़े न देने पर वह छल से उनके घोडे़ यहां ले आई। इससे राजा का कोढ़ तो ठीक हो गया, लेकिन कुछ अरसे बाद उसकी मौत हो गई। ठाकुर शहजादी से विवाह करके आबू नगरी में रहने लगा। पांच पीरों ने बार-बार घोड़े लौटाने का संदेश भिजवाया, लेकिन ठाकुर व शहजादी ने घोड़े नहीं लौटाए। इस पर पांच-पीर अपनी पत्नियों को उनके पीछे ना आने की नसीहत देकर स्वयं घोड़े लेने आबू नगरी आ पहुंचे और टीले पर डेरा डाल दिया। काफी समय बाद भी जब पीर वापस मुल्तान नहीं पहुंचे तो उनकी पत्नियां उन्हे ढूंढते-ढूंढते आबू नगरी आ पहुंची। पंजपीरों ने जब अपनी पत्नियों को देखा तो वह गुस्से से बेकाबू हो गए और उन्हे श्राप देकर भस्म कर दिया। उधर, शहजादी द्वारा घोड़े न लौटाने कि जिद से गुस्साए पंजपीरों ने आबू नगरी को नष्ट होने का श्राप दे दिया, लेकिन उसका कोई असर न हुआ, जब पांचपीरों ने अपनी दिव्य दृष्टि से देखा तो उन्हें पता चला उनका मामा अलीबख्श अपनी अदृश्य शक्ति से आबू नगरी को बचा रहा है। इस पर उक्त पीरों ने अपने मामा को धिक्कारा तो वह नगर छोड़ कर चला गया। उसके जाते ही आबू नगरी राख हो गई। महल व घर खंडहर में तबदील हो गए। तब से पंजपीरों व उनकी पत्नियों की मजारे यहां पर लोगों की श्रद्धा का केंद्र है। हर वर्ष लगने वाले मेले में यहां हजारों श्रद्धालु आकर शीश नवा कर मन्नतें मांगते है। अबोहर मेले के शुरूआत 30 जुलाई से पहले ही शुरू कर दी जाती है। मेले के दिन पंजाब, हरियाणा, राजस्थान इत्यादि प्रदेशों से पंजपीरों की मजार पर मत्था टेक कर प्रसाद चढ़ाते हैं व लंगर लगाते हैं। मेले के उपलक्ष्य में नगर में जगह-जगह पर लोग आने जाने वाले श्रद्धालुओं के लिए लंगर लगाते है। मेला स्थल पर विभिन्न तरह की दुकानें व झूले लगाए जाते हैं और लोग यहां से जमकर खरीददारी करने के लिए। मेले के दिन यहां पहलवान भी पहुंचते है जो अपने जौहर दिखाते है।
पंजपीर मजार बनी अबोहर के आभा नगरी की पहचान
