14 फरवरी 2025 : काशी जिसे वाराणसी के नाम से भी जाना जाता है एक प्राचीन शहर है जो गंगा नदी के तट पर स्थित है. यह हिंदुओं के लिए एक पवित्र स्थान है और माना जाता है कि यहां मरने से मोक्ष की प्राप्ति होती है. काशी में गंगा नदी का एक अनोखा दृश्य देखने को मिलता है. यहां गंगा नदी उत्तर वाहिनी न होकर दक्षिण वाहिनी है. यानी यहां गंगा नदी अन्य स्थानों के विपरीत उल्टी दिशा में बहती है.
पौराणिक कथा
इस उलटे प्रवाह के पीछे एक पौराणिक कथा है. कहा जाता है कि जब गंगा नदी स्वर्ग से पृथ्वी पर अवतरित हुईं तो वह अपने वेग के साथ बह रही थीं. इस वेग के कारण काशी के पास स्थित भगवान दत्तात्रेय का कमंडल और कुशा आसन भी गंगा के साथ बह गया. जब भगवान दत्तात्रेय को यह ज्ञात हुआ तो उन्होंने गंगा से अपने कमंडल और कुशा आसन को वापस करने का आग्रह किया. गंगा ने भगवान दत्तात्रेय से क्षमा मांगी और उनके कमंडल और कुशा आसन को वापस कर दिया. इसके बाद गंगा ने काशी में अपनी दिशा बदल ली और उलटी दिशा में बहने लगीं. इस प्रकार काशी में गंगा का उलटा प्रवाह भगवान दत्तात्रेय के सम्मान में है.
भौगोलिक कारण
गंगा के उलटे प्रवाह का एक भौगोलिक कारण भी है. काशी में गंगा नदी का मार्ग धनुषाकार है. इस कारण से जब गंगा नदी काशी में प्रवेश करती है तो वह पहले पूर्व दिशा में मुड़ती है और फिर पूर्वोत्तर दिशा में. इस घुमाव के कारण गंगा नदी का प्रवाह उलटा प्रतीत होता है.
धार्मिक महत्व
गंगा का उलटा प्रवाह काशी के धार्मिक महत्व को और भी बढ़ा देता है. इसे एक चमत्कार माना जाता है और यह भक्तों को अपनी ओर आकर्षित करता है. कई लोग गंगा के उलटे प्रवाह को देखकर आश्चर्यचकित रह जाते हैं और इसे ईश्वर का एक अद्भुत लीला मानते हैं.
