मुंबई 25 नवंबर 2025 : केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने सोमवार को कहा कि “IIT बॉम्बे के नाम में ‘बॉम्बे’ वैसे ही रखा गया, उसे ‘मुंबई’ नहीं किया गया — यह अच्छी बात है।” नाम बदलने के जरिए देश के इतिहास पर मौजूद मुगलकालीन और ब्रिटिश उपनिवेशवाद की छाप मिटाने की नीति अपनाने वाली केंद्र सरकार के मंत्री के इस बयान ने, महानगरपालिका चुनावों से ठीक पहले, नए विवाद के संकेत दे दिए हैं।
IIT मुंबई के पी.सी. सक्सेना सभागार में आयोजित एक कार्यक्रम में, क्वांटम-टेक्नोलॉजी, मेडिकल क्षेत्र में आई तकनीकी प्रगति आदि विषयों पर बात करते हुए उन्होंने यह टिप्पणी की। उन्होंने कहा—
“IIT के नाम में आपने ‘बॉम्बे’ को बरकरार रखा और उसे ‘मुंबई’ नहीं किया, इससे मैं खुश हूँ। IIT मद्रास के बारे में भी मेरी यही भावना है।”
मुंबई महानगरपालिका चुनावों की पृष्ठभूमि में, पूरे महानगर क्षेत्र में मराठी बनाम अमराठी मुद्दा पहले से ही संवेदनशील बना हुआ है। ऐसे में केंद्र सरकार के एक मंत्री द्वारा दिया गया यह बयान सुनकर कार्यक्रम में मौजूद कई लोगों की भौंहें तन गईं, और दर्शकों के बीच धीमे स्वर में नाराज़गी भी सुनाई दी।
दुर्भावना क्यों?
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, मुंबई का आधिकारिक नाम आज भी “IIT बॉम्बे” है। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में केंद्र और राज्य सरकार, ‘विदेशी’ छाप मिटाने के लिए कई संस्थानों और शहरों के नाम बदल चुकी हैं। हाल ही में महाराष्ट्र में औरंगाबाद, उस्मानाबाद और अहमदनगर जिलों व शहरों के नाम क्रमशः छत्रपति संभाजीनगर, धाराशिव और अहिल्यानगर कर दिए गए।
मुंबई में भी कर्नाक ब्रिज का नाम सिंदूर पुल और एल्फिन्स्टन रोड स्टेशन का नाम प्रभादेवी कर दिया गया।
ऐसे में यह सवाल उठाया जा रहा है कि फिर मुंबई के मामले में भेदभाव क्यों?
