10 जनवरी 2025 उत्तराखंड के बागेश्वर जिले में कई पौराणिक मान्यताएं, जो आज भी बखूबी निभाई जाती हैं. इन्हीं में से एक मान्यता कैरूवा के पौधे से जुड़ी है. इस पौधे को पहाड़ में शुद्धता का प्रतीक माना जाता है. मान्यताओं के अनुसार, पहाड़ में जब भी किसी के घर बच्चा पैदा होता है, तो उस समय कैरूवा का तना घर की दहलीज पर लगाया जाता है. ऐसा करने से घर में आने वाले लोग दहलीज से गुजरकर शुद्ध होकर बाहर आते हैं.
कोरोना काल में भी पहाड़ में इस पौधे का बहुत इस्तेमाल किया गया था. बागेश्वर के ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी कैरूवा के पौधे का प्रयोग किया जाता है. स्थानीय जानकार किशन मलड़ा ने Local18 को बताया कि कैरूवा का पौधा पहाड़ में बेहद ही शुद्ध माना जाता है. इसे दहलीज पर लगाने से अंदर से बाहर और बाहर से अंदर आने वाले लोग स्वतः शुद्ध हो जाते हैं, जिस कारण से इसे घर की दहलीज पर लगाया जाता है. पहाड़ों में सदियों से ही इस मान्यता को बखूबी निभाया जा रहा है.
आज भी पहाड़ में जब किसी के घर में बच्चा पैदा होता है, तो उस दौरान कैरूवा के तने का इस्तेमाल किया जाता है. घर में आने वाले लोगों को शुद्ध करने के साथ ही कैरूवा का तना मुख्य रूप से नवजात शिशु की सुरक्षा के लिए दरवाजे पर लगाया जाता है.
मान्यता है कि ऐसा करने से बच्चे के आसपास शुद्ध वातावरण बना रहता है. बच्चे के आसपास नकारात्मक प्रभाव नहीं होता है. इसे दरवाजे पर लगाने से घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है.
पहाड़ों की मान्यताओं के अनुसार, जब घर में बच्चे का जन्म होता है, तो उस दौरान घर का कोई एक बुजुर्ग सदस्य सुबह स्नान कर कैरूवा का तना ढूंढकर लाता है. घर पर लाने के बाद इस तने को दरवाजे के साइज के हिसाब से काटा जाता है.
इसके बाद दो कीलों की सहायता से इसे दरवाजे के ऊपरी हिस्से पर लगा दिया जाता है. नामकरण संस्कार होने तक इस तने को दहलीज पर ही रखा जाता है. नामकरण के बाद इसे दरवाजे से निकाला जाता है. दरवाजे से निकालने के बाद इसे किसी फूल के पेड़ के नीचे डाल दिया जाता है.
