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Shattila Ekadashi 2025: व्रत, कथा और दान का महत्व

23 जनवरी 2025 : भारतीय संस्कृति में एकादशी का व्रत विशेष महत्व रखता है. माघ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को षटतिला एकादशी के नाम से जाना जाता है. इस दिन भगवान विष्णु की पूजा का विधान है और तिल का विशेष रूप से दान किया जाता है. माना जाता है कि इस व्रत को करने से जीवन में सुख-शांति और समृद्धि आती है. पंडित अनिल शर्मा इस दिन की व्रत विधि और दान का महत्व बता रहे हैं.

षटतिला एकादशी का महत्व
‘षट’ का अर्थ है छः और ‘तिला’ का अर्थ है तिल. इस एकादशी में तिल का छः प्रकार से उपयोग किया जाता है, तिल का स्नान, तिल का उबटन, तिल का हवन, तिल का तर्पण, तिल का भोजन और तिल का दान. मान्यता है कि ऐसा करने से मनुष्य के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है. इस व्रत का पालन करने से व्यक्ति के जीवन में आर्थिक स्थिरता आती है और दरिद्रता दूर होती है.

षटतिला एकादशी व्रत कथा
एक समय की बात है. एक ब्राह्मण स्त्री अपने पति के मृत्यु के बाद अपना जीवन भगवान विष्णु की भक्ति में लीन कर देती है. वह निष्ठापूर्वक हर महीने एकादशी का व्रत रखती, लेकिन दान-पुण्य के महत्व को नहीं समझती थी. उसकी भक्ति में कहीं एक कमी थी त्याग और उदारता का अभाव.

यह देखकर जगत के पालनहार भगवान विष्णु चिंतित हुए. उन्होंने सोचा कि मेरी यह भक्त इतनी श्रद्धा से मेरी उपासना करती है लेकिन दान के बिना उसकी भक्ति अपूर्ण है. तब उन्होंने एक लीला रची. वे स्वयं एक भिक्षुक का वेश धारण कर उस ब्राह्मणी की कुटिया पर पहुंचे और भिक्षा मांगी. ब्राह्मणी ने अनजाने में उस भिक्षुक के हाथों में एक मिट्टी का ढेला रख दिया.

भगवान विष्णु उस ढेले को लेकर अपने दिव्य धाम बैकुंठ लौट गए. समय बीता और ब्राह्मणी का भी देहांत हो गया. अपने कर्मों के अनुसार वह स्वर्ग लोक पहुंची लेकिन वहां उसने अपनी कुटिया को अन्न और धन से शून्य पाया. वह घबराकर भगवान विष्णु के पास गई और विनीत भाव से पूछा, “हे प्रभु, मैंने जीवन भर आपकी आराधना की फिर भी मेरी कुटिया इतनी सूनी क्यों है?”

तब भगवान विष्णु ने उसे दान के महत्व और भिक्षा में मिट्टी का ढेला देने की बात याद दिलाई. उन्होंने कहा, “तुम्हारी भक्ति सच्ची है लेकिन दान के बिना वह पूर्ण नहीं होती. जब देव कन्याएं तुमसे मिलने आएं, तब तुम अपनी कुटिया का द्वार खोलना तब वो तुम्हें षटतिला एकादशी व्रत की महिमा बताएंगी.” भगवान की आज्ञा का पालन करते हुए ब्राह्मणी ने प्रतीक्षा की. कुछ समय बाद दिव्य सौंदर्य से परिपूर्ण देव कन्याएं उसकी कुटिया पर आईं. ब्राह्मणी ने उनसे षटतिला एकादशी व्रत के बारे में पूछा. देव कन्याओं ने उसे इस व्रत की विधि और महत्व विस्तार से समझाया.

ब्राह्मणी ने पूरी श्रद्धा और विधि-विधान से षटतिला एकादशी का व्रत किया. इस व्रत के प्रभाव से उसकी कुटिया अन्न, धन और वैभव से भर गई. उसे अपनी भूल का अहसास हुआ और दान के महत्व का ज्ञान हुआ.

इस कथा से यह संदेश मिलता है कि केवल भक्ति ही नहीं बल्कि दान-पुण्य भी जीवन का अभिन्न अंग है. षटतिला एकादशी का व्रत करने और तिल का दान करने से मनुष्य को भौतिक सुखों के साथ-साथ मोक्ष की भी प्राप्ति होती है. यह व्रत हमें त्याग उदारता और निःस्वार्थ सेवा का पाठ पढ़ाता है.

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