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New District: हांसी को 193 साल बाद मिला जिले का दर्जा, हिसार 53 साल में बंटा 6 हिस्सों में

17 दिसंबर 2025 : हिंदू मुस्लिम एकता के प्रतीक जिनको सिख धर्म के संस्थापक गुरुनानक भी श्रद्धा से देखते थे, वह महान संत फरीदुद्दीन मसूद गंजशकर, जो बाबा फरीद या शैख फरीद के नाम से प्रसिद्ध थे, की कर्मभूमि हांसी 193 साल पहले करीब 29 साल तक जिला रहा। अब हांसी को दोबारा जिले का दर्जा मिला है। 

हिसार पिछले करीब 53 साल में छह टुकड़ों में बंट गया है। सबसे पहली बार 22 दिसंबर, 1972 को हिसार से भिवानी को अलग करके जिला बनाया गया। इसके बाद 1 सितंबर, 1975 को हिसार से अलग करके सिरसा को जिला बनाया और फिर 15 जुलाई, 1997 को हिसार से अलग करके फतेहाबाद को जिला बनाया गया। हिसार से अलग होकर जिला बने भिवानी से चरखीदादरी को अलग करके 22 जनवरी, 2016 को जिला बनाया गया और अब हिसार से अलग करके हांसी को जिला बनाया गया है।

इतिहासकार एवं डीएन कॉलेज के इतिहास विभाग के प्रो. महेंद्र सिंह ने बताया कि अंग्रेजों ने 1803 में जब हरियाणा पर कब्जा किया तो हांसी को प्रशासनिक मुख्यालय अर्थात जिला बनाया गया। हालांकि बाद में 1832 में हिसार को जिला बना दिया गया। उन्होंने बताया कि हांसी का इतिहास हिसार से भी पुराना है। हांसी वर्ष 735 में बना था जबकि हिसार वर्ष 1354 में बaना था।

जिले के बारे में उन्होंने बताया कि दिल्ली सल्तनत काल मेें जिले को अक्ता के नाम से पुकारा जाता था जबकि मुगलों ने इसको परगना नाम दिया और फिर जब अंग्रेज आए तो उन्होंने इसको प्रशासनिक केंद्र और फिर जिला नाम दिया। उन्होंने बताया कि बाबा फरीद जैसी हस्ती हांसी में रही, जो हिंदू-मुस्लिम एकता के प्रतीक थे और सिख धर्म के संस्थापन गुरु नानक भी इनको श्रद्धा से देखते थे।

 बता दें कि बाबा फरीक मूल रूप से पंजाबी मुस्लिम परिवार से थे और उनका जन्म 8 अप्रैल, 1188 को मुल्तान के समीप कोठेवाल गांव में हुआ था। उन्होंने अपनी प्राथमिक शिक्षा मुस्लिम शिक्षा के केंद्र मुल्तान में प्राप्त की। वहां पर उनकी मुलाकात अपने गुरु ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तिया काकी से हुई जो बगदाद से दिल्ली जा रहे थे। इसके बाद अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद वे दिल्ली गए और उन्होंने गुरु ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तिया काकी से इस्लामिक सिद्धांत की शिक्षा ली। इसके बाद वे हांसी आ गए। जब 1235 में उनके गुरु ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तिया काकी का देहांत हो गया तो वे उनके उत्तराधिकारी बनकर दिल्ली गए लेकिन दिल्ली में रहने की बजाय पंजाब के उस हिस्से में रहे जो अब पाकिस्तान में है।

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