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महाभारत: ऋषि शरद्वान से जन्मे कृपाचार्य और कृपी, जानें कहानी

17 जनवरी 2025 महाभारत काल में ऋषियों द्वारा अप्सराओं के जरिए मोहित होना और विचलित हो जाने की कई कहानियां हैं. इनसे कई पुत्र पुत्रियों के जन्म के भी किस्से हैं. महाभारत में ऐसी ही एक घटना महर्षि शरद्वान गौतम को लेकर है, जो जबरदस्त तपस्वी और धनुर्धर थे. वो कैसे इंद्र द्वारा भेजी गई एक अप्सरा पर मोहित हुए तो क्या हो गया.

महाभारत काल में महर्षि गौतम जाने माने ऋषि थे. उनके आश्रम में संन्यासी रहते थे. उसी में एक थे शरद्वान, वह धनुर्विद्या में पारंगत थे. उन्होंने तपस्या करने की ठानी और वन में जाकर कठोर तपस्या करने लगे. जब वह इसमें जबरदस्त तरीके से लीन हो गए तो इंद्र को चिंता हुई कि ये तपस्या तो उन्हें मुश्किल में डाल सकती है.

पौराणिक कथाओं में इंद्र को देवताओं के राजा बताया गया है. वह स्वर्ग के अधिपति माने जाते हैं. वह अक्सर ऋषियों की तपस्या से भयभीत हो जाते थे, क्योंकि ये माना जाता था कि गहन तपस्या से ऋषि अपार शक्ति और सिद्धियां प्राप्त कर सकते हैं. इन शक्तियों से वे इंद्र के स्वर्ग पर अधिकार करने या उनकी स्थिति को चुनौती देने में सक्षम हो सकते थे.

डर जाया करते थे इंद्र
इस डर से कि कोई ऋषि अपनी तपस्या के बल पर इंद्रासन (इंद्र का सिंहासन) छीन सकता है, इंद्र अक्सर उनकी तपस्या भंग करने के लिए अप्सराओं को भेजते थे. अप्सराएं अपनी अद्वितीय सुंदरता और मोहकता के लिए जानी जाती थीं. उनकी उपस्थिति और मोहक नृत्य से ऋषियों का ध्यान भंग हो जाता था, जिससे उनकी तपस्या में बाधा आ जाती थी.

महर्षि शरद्वान का ध्यान जब अप्सरा ने भंग किया 
महाभारत, आदिपर्व, अध्याय 128 में लिखा गया है कि महर्षि शरद्वान के पास जानपदी नाम की अप्सरा पहुंची. उसके पहुंचते ही शरद्वान का ध्यान भंग हुआ. वह अप्सरा के प्रति आकर्षित हुए. उसके सौंदर्य पर मुग्ध होकर शरद्वान गौतम का अनजाने ही वीर्यपात हो गया.

इससे जन्म हुआ कृप और कृपी का 
ये नीचे एक सरकंडे पर गिर कर दो हिस्सों में बंट गया. यह एक प्रकार का घास जैसा पौधा होता है. शरद्वान अपना धनुष बाण तथा काला मृगचर्म वहीं छोड़कर कहीं चले गये. इससे एक बेटे और बेटी का जन्म हुआ. जो कृप और कृपी थे.

कृप और कृपी की आगे की कहानी
कृप ही आगे चलकर कृपाचार्य हुए और कृपी का विवाह द्रोणाचार्य से हुआ, जो पांडवों और कौरवों के गुरु थे. कृपाचार्य को बाद में अमर होने का वरदान भी मिला. इसका जिक्र महाभारत के दूसरे संस्करणों में भी किया गया है.

राजा शांतनु ने वन से लाकर पाला
जब राजा शांतनु वन में गए तो उन्होंने इन दोनों नवजात बच्चों को देखा. वो उन्हें महल ले आए. वहीं उनका लालन पालन किया गया. बाद में जब शरद्वान को पता लगा कि उनके बच्चे राजा शांतनु के महल में पल रहे हैं तो वह उनके पास पहुंचे. उन्होंने कृप को धनुर्विद्या में पारंगत बना दिया. बाद में द्रोणाचार्य से पहले कृपाचार्य ने ही पांडवों और कौरवों को शुरुआती धनुर्विद्या दी.

एक किस्सा ये भी 
इसे लेकर एक और किस्सा है. महर्षि शरद्वान की तपस्या भंग करने के लिए देवराज इंद्र ने ‘जानपदी’ नामक एक देवकन्या भेजी थी, जिसके गर्भ से दो यमज भाई-बहन जन्मे. माता-पिता दोनों ने नवजात शिशुओं को जंगल में छोड़ दिया, जहां हस्तिनापुर के महाराज शांतनु ने इनको देखा. शांतनु ने इन पर कृपा करके दोनों को पाला पोसा, जिससे इनके नाम ‘कृप’ तथा ‘कृपि’ पड़ गए.

महाभारत में किस ओर से लड़े
महाभारत के युद्ध में कृपाचार्य कौरवों की ओर से सक्रिय थे. कर्ण के मरने के बाद उन्होंने दुर्योधन को बहुत समझाया कि उसे पांडवों से संधि कर लेनी चाहिए; किंतु दुर्योधन ने इससे इनकार कर दिया.

कौरवों की पराजय और उनके युद्ध में मारे जाने के बाद कृपाचार्य पांडवों के पास आ गए. बाद में इन्होंने परीक्षित को अस्त्र विद्या सिखाई. ‘भागवत’ के अनुसार सावर्णि मनु के समय कृपाचार्य की गणना सप्तर्षियों में होती थी.

अप्सरा जानपदी कौन थीं?
जानपदी एक अप्सरा थी. हिंदू पौराणिक कथाओं में अप्सराएं स्वर्ग की सुंदर अप्सराएं होती थीं, जिन्हें इंद्र अपने आदेश पर पृथ्वी पर भेजते थे. हालांकि जानपदी का नाम जरूर महाभारत में मिलता है लेकिन इससे ज्यादा कोई जानकारी नहीं मिलती.

क्या होती थीं अप्सरा
पौराणिक कथाओं के अनुसार, इंद्र के पास कई अप्सराएं थीं, जो स्वर्गलोक (इंद्रलोक) में उनकी सभा की शोभा बढ़ाने के लिए होती थीं. वो इंद्र का आदेश मानती थीं. इनका मुख्य काम इंद्र और अन्य देवताओं का मनोरंजन करना था.
कुछ प्रमुख अप्सराओं के नाम इस प्रकार हैं – उर्वशी, मेघनदा, रम्भा, तिलोत्तमा, मेनका, घृताची, पुण्यगंधा और सुकेशी.

जब ऋषियों और अप्सराओं का मिलन हुआ
पौराणिक कथाओं में कुछ अप्सराओं के ऋषियों के साथ संबंधों के परिणामस्वरूप महान ऋषियों का जन्म हुआ.

मेघनदा (मेनका) और विश्वामित्र
मेनका एक अत्यंत सुंदर अप्सरा थीं, जिन्हें इंद्र ने ऋषि विश्वामित्र की तपस्या भंग करने के लिए भेजा था. मेनका और विश्वामित्र के मिलन से एक पुत्री शकुंतला का जन्म हुआ. शकुंतला बाद में राजा दुष्यंत की पत्नी बनीं. उनके पुत्र भरत के नाम पर भारत का नाम पड़ा.

घृताची और कश्यप
घृताची एक अप्सरा थीं जिनके कश्यप ऋषि के साथ संबंध से कई महान संतों और ऋषियों का जन्म हुआ. घृताची के पुत्रों में कई प्रतिभाशाली संत और विद्वान हुए.
घृताची कश्यप ऋषि तथा प्राधा की पुत्री थीं. पौराणिक परंपरा के अनुसार घृताची से रुद्राश्व द्वारा 10 पुत्रों, कुशनाभ से 100 पुत्रियों, च्यवन पुत्र प्रमिति से कुरु नामक एक पुत्र और वेदव्यास से शुकदेव का जन्म हुआ. एक बार भरद्वाज ऋषि ने घृताची को निर्वस्त्र गंगा में स्नान करते देखा. उनका वीर्यपात हो गया. वीर्य को उन्होंने एक द्रोणि (मिट्टी का बर्तन) में रख दिया, जिससे द्रोणाचार्य पैदा हुए.

उर्वशी और पुरुरवा
उर्वशी एक अत्यंत सुंदर अप्सरा थीं, जिनका राजा पुरुरवा के साथ संबंध था. उनके मिलन से कई संतानों का जन्म हुआ, जिनमें से कई आगे चलकर महत्वपूर्ण राजा और ऋषि बने.

रम्भा
रम्भा भी एक प्रसिद्ध अप्सरा थीं, हालांकि उनके साथ सीधे किसी ऋषि का नाम नहीं जोड़ा गया है, लेकिन उन्हें भी कई कथाओं में ऋषियों की तपस्या भंग करने की कोशिश में शामिल दिखाया गया है.

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