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करौली की शाही चित्रकारी का जलवा, शादी में अनिवार्य वर्षों पुरानी परंपरा

05 दिसंबर 2024 : शादियों के अवसर करौली में एक ऐसा रिवाज कायम है जिसके बिना शादी की धूम अधूरी मानी जाती है. करौली में जिस घर में भी शादी की शहनाई बजती है उससे पहले धर के मुख्य द्वार पर यह अनोखी चित्रकार यहां के स्थानीय चित्रकार परिवारों द्वारा की जाती हैं.

इस चित्रकारी में मुख्य रूप से शादी वाले घर के मुख्य द्वार पर चार सिपाही, हाथी, घोड़े और कुछ खास तरह के चित्र बनाए जाते हैं. दिलचस्प बात यह है कि करौली में घरों में शादी का आकलन भी इसी खास और शाही चित्रकारी से लगाया जाता है.

इस अनूठी परंपरा के बारे में करौली के सेवानिवृत अध्यापक कृष्ण चंद्र चतुर्वेदी का कहना है कि यह परंपरा करौली में राजशाही जमाने से ही चली आ रही है और लोक संस्कृति की यह परंपरा परिचायक हैं. इस परंपरा में पुरानी संस्कृति और जिस प्रकार पुराने जमाने में बारातें निकला करती थी उनकी झलक खासतौर से देखने को मिलती है. 

करौली में चाहे, लड़की की शादी हो या लड़के की लेकिन, हर घर में यह चित्रकारी पुराने ज़माने से करवाई जाती है. इसी से यहां घरों में शादियों का पता लगता है.

स्थानीय निवासी कृष्ण चंद्र चतुर्वेदी के मुताबिक करौली में शादियों के अवसर यह चित्रकारी कोई परंपरा नहीं, बल्कि मान्यता है जिसे आज भी करौली के हर घर में शादियों के अवसर पर निभाया जाता है.

इस खास परंपरा के तहत की जाने वाली चित्रकारी को भी करौली के कुछ ही चुनिंदा चित्रकार जानते हैं. जिन्हें इस चित्रकारी के बदले शादी वाले घर से नेक और शगुन के रूप में रुपया नारियल भी भेंट किया जाता है और चित्रकार का तिलक भी किया जाता है.

राजपूताने की देशी रियासत रही करौली में यह परंपरा रियासत काल से चली आ रही है. जिसका इतिहास 500 वर्ष पुराना है. जानकारों का कहना है कि शादी के घर में यह घोड़े-हाथी शाही सवारी के प्रतीक होते हैं.

इस चित्रकारी को जानने वाले भी करौली में गिने-चुने ही चित्रकार हैं. यहां बहुत कम चित्रकार है जों इस कला को जानते हैं. इसी वजह से शादियों के अवसर पर उन्हें भरपूर मात्रा में रोजगार मिलता है.

स्थानीय चित्रकार लोकेश कोली के अनुसार इस परंपरा के तहत घर के मुख्य द्वार पर विशेष रूप से हाथी-घोड़े, चार सिपाही, रेलगाड़ी, बैलगाड़ी, डोलियां, शहनाई, ढोलक और बेल-बुटे ऐसे सभी चित्र बनाए जाते है.

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