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रामपुर अटैक केस में हाईकोर्ट का बड़ा फैसला, फांसी के कैदियों को मिली रिहाई

लखनऊ/प्रयागराज 30 अक्टूबर 2025 : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बुधवार को 2007 में हुए चर्चित रामपुर सीआरपीएफ कैंप अटैक केस में बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने निचली अदालत द्वारा चार आरोपियों को दी गई फांसी की सजा और एक आरोपी को दी गई उम्रकैद की सजा को रद्द कर दिया है। हाई कोर्ट की दो सदस्यीय पीठ जस्टिस सिद्धार्थ वर्मा और जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा ने कहा कि आतंकवाद की धाराओं के तहत दोष सिद्ध करने के लिए उपलब्ध साक्ष्य अपर्याप्त हैं। कोर्ट ने यह भी माना कि सत्र अदालत ने जो आधार बनाकर सजा सुनाई थी, वे “इतनी कठोर सजा के लिए पर्याप्त नहीं” थे। हालांकि, अदालत ने गैरकानूनी हथियार रखने के आरोप को बरकरार रखते हुए सभी आरोपियों को 10 साल कैद और एक लाख रुपए जुर्माना की सजा सुनाई है।

18 साल बाद मिली राहत
इस मामले में आरोपियों मोहम्मद शरीफ, सबाउद्दीन, इमरान शहजाद, मोहम्मद फारूख और जंग बहादुर को क्रमशः फांसी और उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी। आरोपी वर्ष 2007 से जेल में बंद हैं, ऐसे में दस साल की सजा पूरी हो जाने पर अब उनकी रिहाई तय मानी जा रही है।

अदालत में 39 बार हुई सुनवाई
मामले की सुनवाई के दौरान कुल 39 बार बहस हुई। आरोपियों की ओर से एडवोकेट एम.एस. खान ने बहस की, जिन्हें एडवोकेट अनिल बाजपेई और सिकंदर खान ने सहयोग दिया। बचाव पक्ष ने दलील दी कि पुलिस और सीआरपीएफ के बयानों में विरोधाभास है तथा बरामद विस्फोटक सामग्री की वैधता पर भी सवाल उठाए गए।

जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने फैसले पर जताई संतुष्टि
फैसले के बाद जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि यह “न्याय की जीत” है। उन्होंने कहा, “हाई कोर्ट ने साफ कहा है कि आरोपियों पर आतंकवाद की धाराएं लागू नहीं होतीं। अब उन्हें 18 साल बाद इंसाफ मिला है।” मदनी ने बताया कि यह मुकदमा जमीयत उलेमा महाराष्ट्र (अरशद मदनी) लीगल सहायता कमेटी की ओर से लड़ा गया। उन्होंने कहा कि अब संगठन सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर करेगा ताकि आर्म्स एक्ट की सजा भी खत्म हो सके।

2007 में हुआ था हमला, सात जवान शहीद
31 दिसंबर 2007 की रात रामपुर में स्थित सीआरपीएफ कैंप पर आतंकी हमला हुआ था। इस हमले में सात जवान और एक रिक्शा चालक मारे गए थे। घटना के बाद पुलिस ने कई संदिग्धों को गिरफ्तार किया था, जिनमें से तीन मोहम्मद कौसर, गुलाब खान और फहीम अंसारी को निचली अदालत ने पहले ही बरी कर दिया था।

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