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गाय गोहरी पर्व: आदिवासी संस्कृति की अनूठी परंपरा, इंसानों पर दौड़ती हैं गाय

Gai Gohari Parv 7 जनवरी 2025 : भारत आस्था का देश है, जहां आत्मा से ज्यादा भगवान पर विश्वास होता है. आदिवासी संस्कृति की एक अनूठी परंपरा जिसे गाय गोहरी के नाम से जाना जाता है. अलिराजपुर जिले के ग्राम सेजावड़ा में गाय गोहरी के दिन बड़ी संख्या में लोग बाहर से आते हैं और मन्नत पूरी करने के लिए सैकड़ों गायों के पैरो में लेट जाते हैं.

यहां हर साल गोवर्धन पूजा पर गायगोहरी पर्व पूरे उत्साह से मनाया जाता है. इस पर्व में पहले तो गायों को भड़काने के लिए उनके पांवों पर पटाखे बांधे जाते हैं, उसके बाद वे जिस रास्ते से जाती हैं, वहां कई लोग लेट जाते हैं. उनके ऊपर से कई गाय-बैल गुजर जाते हैं, उसके बाद भी किसी के शरीर पर जरा भी खरोंच नहीं आती. यह त्यौहार गौतमपुरा में लोकप्रिय है, जो इंदौर से लगभग 60 किमी दूर है.

इस रस्म के लिए गोपालक कई गायों को सजाकर आयोजन स्थल पर लाते हैं और मन्‍नतधारी गायों के आगे लेटते हुए मन्नत मांगते हैं. मन्नत पूर्ण करने के लिए हर साल गाय-गोहरी पर्व आने का इंतजार बना रहता है. मंगल कामना या अन्य संकल्प पूर्ण होने पर मन्नतधारी हर साल स्वजन की मदद से गायों को अपने ऊपर से निकलवाने लगे और स्थायी रूप से इस परंपरा ने आकार ले लिया. धार जिले के अलावा उज्जैन जिले में कुछ स्थानों पर गाय–गोहरी पर्व मनाया जाता है.

मध्य प्रदेश में खेला जाता है हिंगोट युद्ध

वहीं, मध्य प्रदेश के इंदौर में भी दिवाली के अगले दिन अलग तरह का खेल खेला जाता है, जिसे लोग हिंगोट युद्ध कहते हैं. इसमें दोनों पक्षों के लोग बड़ी संख्या में एक-दूसरे पर जलते पटाखे और आग के गोले फेंकते हुए दिखाई दिए. हिंगोट एक जंगली फल है जो पेड़ से निकलता है और अंदर से खाली होता है. फिर इसमें बारूद भरकर 8-10 दिनों तक सूखने के लिए छोड़ दिया जाता है. हिंगोट को लकड़ी की छड़ी से बांध दिया जाता है और आग लगा दी जाती है, फिर विरोधियों की ओर फेंक दिया जाता है.

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