• Fri. Dec 5th, 2025

अमृत महोत्सव: अमेरिका में गूंजा भारतीय संस्कृति का डंका

Azadi Ka Amrit Mahotsav 2 जनवरी 2025 : ‘एक बिहारी सौ पर भारी’ बिहारियों ने इस कहावत को सचमुच में जिया है. वह दुनिया के किसी भी कोने में रहे वहां अपनी कौशल क्षमता, परिश्रम और पौरुष से अपना लोहा मनवाया है. देश के किसी हिस्से को तो छोड़िए दुनिया के जिस हिस्से में बिहारी बसे उन्होंने भारत की कला, संस्कृति, सभ्यता को वहां जिंदा रखने के लिए सतत प्रयास किया. अपने समाज, प्रदेश और देश से दूर वह जहां भी रहे अपना एक ऐसा समाज बनाया जिसमें उनकी सभ्यता की छाप साफ दिखती रही. दुनिया का कौन सा कोना होगा जहां बिहारी हों और वहां छठ को एक महापर्व के रूप में उन्होंने पहचान नहीं दिलाई हो. 

आज देश जब आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है. ऐसे में 2014 में नरेंद्र मोदी सरकार के गठन के बाद से दुनिया के हर देश में रहनेवाले भारतीयों से अपने देश के बारे में बताने वहां के लोगों को अपने देश के कल्चर और ट्रेडिशन के बारे में जानकारी मुहैया कराने की मुहिम का हिस्सा सरकार ने दुनिया के हर कोने में बसे प्रवासी भारतीयों को बनाया या कहें तो प्रवासी भारतीय एक तरह से भारतीय सभ्यता संस्कृति के अघोषित ब्रांड एंबेसडर बन गए. 

ऐसी ही एक बेहतरीन कोशिश दुनिया के पश्चिमी सभ्यता के बहते ज्वार वाले प्रदेश अमेरिका में शुरू की बिहार की बेटी मधु झा मिश्रा ने. बिहार के एक छोटे से शहर सीतामढ़ी से निकलकर आंखों में सफलता के सपने लिए वह अमेरिका तो पहुंच गई लेकिन, वहां तमाम सफलताओं ने भी उन्हें सोने नहीं दिया. वह 1998 में अमेरिका पहुंची और आज वह वहां साल्ट लेक सिटी में रहती हैं. सफलताओं के तमाम पड़ावों को पार करते भी उनका मन अपने कल्चर से अमेरिका सहित दुनिया के तमाम देशों के लोगों को अवगत कराने को लेकर बेचैन रहा. फिर वक्त आया साल 2023 का जिसके जनवरी महीने में उन्होंने वह शुरुआत की जिसकी सोच उनके अंदर हिलोरे मार रही थी. मंडला, लीपन और मधुबनी पेंटिंग जैसी कलाओं में महारथी एक सॉफ्टवेयर प्रोग्रामर के लिए इसको आगे ले जाना इतना आसान नहीं था. लेकिन, फिर मन बिहारी जो ठहरा, वह कहां मानने वाला था.

घर से अपने बैग में रखकर एक सूप लेकर आई थी उसको मधु झा मिश्रा ने कैनवास का आकार दे दिया और फिर क्या था इस कला ने धीरे-धीरे रंग दिखाना शुरू किया. सूप या सूपली से कम ही लोग परिचित होंगे लेकिन बिहार या पूर्वांचल के लोगों के लिए हर आध्यात्मिक और अन्य आयोजनों में सबसे शुद्ध माना जानेवाला यह कच्चे बांस का बना उत्पाद. जिसमें पूजा का सामान रखकर छठ में आपने सूर्य को अर्घ्य देते लोगों को देखा होगा. बिहार सहित पूर्वांचल के हिस्से में इसे अनाज से लेकर कई चीजों की सफाई के लिए इस्तेमाल किया जाता है. इसको कैनवास बना दिया जाए यह तो कल्पना से भी परे था.  

संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार की तरफ से मधु झा मिश्रा के मंडला पेंटिंग आर्ट को एक पहचान दी गई. दरअसल जब संस्कृति मंत्रालय की तरफ से इनकी इस कला को सराहा गया तो उन्हें इसकी भनक भी तब लगी जब उनको सोशल साइट्स पर मंत्रालय के द्वारा टैग किया गया. संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार ने इसे पेश करते हुए लिखा कि हमारे साथ एक मनोरम दृश्य यात्रा पर निकलें! हम आपके लिए जटिल और उज्ज्वल पैटर्न प्रदर्शित करने वाली मंडला कला का एक असाधारण नमूना लेकर आए हैं, जिसे – anaadee.hunar (इंस्टाग्राम) द्वारा साझा किया गया है. संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार ने इसे हर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म जैसे कि इंस्टाग्राम, फेसबुक, कू और ट्वीटर पर साझा किया और लोगों को इसके बारे में जानकारी मिल सकी. बिहार के इस आर्ट को अब दुनिया में पहचान मिल रही है. ऐसे में मधु झा मिश्रा के इस काम की सराहना हर तरफ हो रही है. बिहार की इस बेटी ने आजादी के इस अमृत महोत्सव में बिहार के आर्ट की पहचान दुनिया के सबसे विकसित पश्चिमी सभ्यता वाले देश अमेरिका को भी करा दी है और आज वहां बिहार का डंका बज रहा है. 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *