13 दिसंबर 2025 : बारामती (पुणे) की अतिरिक्त सत्र अदालत ने महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री अजित पवार को बड़ी राहत दी है. अदालत ने 2014 के लोकसभा चुनाव से जुड़े एक मामले में उनके खिलाफ न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा जारी किए गए इश्यू ऑफ प्रोसेस के आदेश को रद्द कर दिया. सत्र अदालत ने साफ कहा कि मजिस्ट्रेट अदालत का आदेश कानून की कसौटी पर टिकने योग्य नहीं है और उसमें न्यायिक विवेक का स्पष्ट अभाव नजर आता है.
क्या है पूरा मामला
यह मामला वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान बारामती में हुई एक चुनावी सभा से जुड़ा है. शिकायत सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी और उस समय आम आदमी पार्टी (AAP) के लोकसभा उम्मीदवार रहे सुरेश खोपड़े ने दर्ज कराई थी.
खोपड़े का आरोप था कि 16 अप्रैल 2014 को एक चुनावी सभा में अजित पवार ने कथित तौर पर मतदाताओं को धमकी दी थी कि अगर उन्होंने उनकी चचेरी बहन और एनसीपी नेता सुप्रिया सुले के पक्ष में मतदान नहीं किया, तो कुछ गांवों की जलापूर्ति बंद कर दी जाएगी. इन्हीं आरोपों के आधार पर मजिस्ट्रेट अदालत में शिकायत दाखिल की गई थी और बाद में अजित पवार के खिलाफ प्रक्रिया जारी करने का आदेश पारित किया गया था.
अजित पवार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत पाटिल सत्र अदालत में पेश हुए. उन्होंने दलील दी कि मजिस्ट्रेट अदालत ने बिना पर्याप्त कारण दर्ज किए और बिना जुडिशल एप्लीकेशन ऑफ़ माइंड के प्रक्रिया जारी कर दी, जो कानून के खिलाफ है. पाटिल ने कहा कि किसी भी आरोपी को तलब करने से पहले अदालत को यह स्पष्ट करना होता है कि प्रथम दृष्टया अपराध बनता है या नहीं.
उन्होंने बॉम्बे हाईकोर्ट के कई फैसलों का हवाला देते हुए बताया कि उच्च न्यायालय पहले भी ऐसी प्रवृत्ति की कड़ी आलोचना कर चुका है, जहां मजिस्ट्रेट अदालतें बिना ठोस कारण बताए प्रक्रिया जारी कर देती हैं.
जांच रिपोर्ट में नहीं सामने आया नया साक्ष्य
अधिवक्ता पाटिल ने यह भी अदालत को बताया कि मजिस्ट्रेट ने खुद वीडियो और ऑडियो साक्ष्य को अस्पष्ट मानते हुए दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 202 के तहत जांच के आदेश दिए थे. जांच रिपोर्ट में भी कोई नया या ठोस साक्ष्य सामने नहीं आया. इसके बावजूद, उसी पुराने और अस्पष्ट सामग्री के आधार पर अजित पवार के खिलाफ प्रक्रिया जारी कर दी गई, जो कानूनन गलत है.
सत्र अदालत ने अपने आदेश में कहा कि मजिस्ट्रेट का फैसला “परवर्स” यानी तर्कहीन और कानून के विपरीत है. अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि आदेश में यह नहीं बताया गया कि भारतीय दंड संहिता की धारा 171C और 171F के जरूरी तत्व किस आधार पर पूरे होते हैं. सिर्फ आरोपों के आधार पर प्रक्रिया जारी करना न्यायसंगत नहीं माना जा सकता.
मामला फिर मजिस्ट्रेट अदालत को भेजा गया
अतिरिक्त सत्र अदालत ने निचली अदालत का आदेश रद्द करते हुए मामला दोबारा मजिस्ट्रेट अदालत को भेज दिया है. अब मजिस्ट्रेट को उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर कानून के मुताबिक नए सिरे से विचार करना होगा. इस फैसले के बाद फिलहाल अजित पवार के खिलाफ चल रही आपराधिक प्रक्रिया पर रोक लग गई है. इसे अजित पवार के लिए एक बड़ी कानूनी राहत के तौर पर देखा जा रहा है, जबकि मामले की आगे की दिशा अब मजिस्ट्रेट अदालत के नए फैसले पर निर्भर करेगी.
