पुणे 17 नवंबर 2025 : महाराष्ट्र में एक सनसनीखेज राजनीतिक मोड़ देखने को मिला है। उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे द्वारा बगावत करके शिवसेना में फूट पड़ी थी, जिसके बाद ‘शिवसेना’ नाम और ‘धनुष्य-बाण’ चुनाव चिन्ह शिंदे गुट को मिला। इस घटनाक्रम के बाद शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) के प्रमुख उद्धव ठाकरे और शिवसेना नेता एकनाथ शिंदे के बीच राजनीतिक दुश्मनी चरम पर पहुंच गई थी। ऐसे में अगर कोई कहे कि दोनों शिवसेना गुट एक साथ आ सकते हैं, तो यकीन करना मुश्किल होगा। लेकिन राजनीति में न कोई स्थाई दोस्त होता है, न स्थाई दुश्मन—यह बात एक बार फिर सिद्ध हो गई है।
इसका ताजा उदाहरण है पुणे जिले की चाकण नगरपरिषद चुनाव। चाकण नगराध्यक्ष के चयन के दौरान दोनों शिवसेना गुट एकजुट नजर आए। यह घटना महाराष्ट्र की राजनीति में हलचल मचाने वाली है और इसने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या यह राज्य की राजनीति में बड़े बदलाव का संकेत है। चाकण में शिंदे और ठाकरे गुट की इस अप्रत्याशित एकता ने राजनीतिक गलियारों में चर्चा तेज कर दी है।
चाकण नगराध्यक्ष पद के लिए शिंदे गुट की उम्मीदवार मनीषा सुरेश गोरे की नामांकन फाइलिंग के दौरान दोनों गुटों के नेता एक मंच पर नजर आए। शिंदे गुट की ओर से शिरूर के विधायक शरद सोनवणे और ठाकरे गुट की ओर से खेड के विधायक बाबाजी काळे साथ नजर आए। बाबाजी काळे ने इस फैसले पर कहा कि दिवंगत पूर्व विधायक सुरेश गोरे के निधन के बाद यह पहली चुनावी परीक्षा है, और उनकी पत्नी मनीषा गोरे चुनाव मैदान में हैं। ऐसे समय में राजनीति से ऊपर उठकर, दिवंगत नेता को श्रद्धांजलि देने के लिए हमने उनका समर्थन किया है।
उन्होंने स्पष्ट किया कि यह कोई स्थाई गठबंधन नहीं है, बल्कि यह निर्णय सिर्फ चाकण नगराध्यक्ष पद तक सीमित है। ठाकरे गुट के प्रमुख उद्धव ठाकरे और संपर्क प्रमुख सचिन अहिर ने भी स्थानीय स्वराज संस्थानों के चुनाव में स्थानीय स्तर पर निर्णय लेने की छूट दी है। बाबाजी काळे ने साफ किया कि राजगुरुनगर और आळंदी में वे स्वबळ पर चुनाव लड़ेंगे।
चाकण में दोनों शिवसेना गुटों की यह एकता अब राज्य की राजनीति में चर्चाओं का केंद्र बन गई है।
