27 अक्टूबर 2025 : कल्पना कीजिए कि आपने 200 किमी/घंटा की रफ्तार से दौड़ने वाली टेस्ला कार खरीदी, लेकिन सड़क पर गड्ढों और ऑटो-रिक्शा की भीड़ के कारण आप केवल 20 किमी/घंटा की रफ्तार से चल रहे हैं। कार का रोमांच और उन्नत तकनीक का आनंद तुरंत फीका पड़ जाता है। ठीक ऐसा ही अनुभव भारत की प्रमुख ट्रेन, वंदे भारत एक्सप्रेस में होता है।
वंदे भारत को 180 किमी/घंटा की गति के लिए डिजाइन किया गया है लेकिन ट्रैक और सुरक्षा कारणों से इसे आधिकारिक तौर पर 160 किमी/घंटा की रफ्तार तक चलाने की अनुमति है। इसके बावजूद, यह ट्रेन पूरे नेटवर्क में औसतन केवल 76 किमी/घंटा की रफ्तार से चलती है, जो 1969 में शुरू हुई राजधानी एक्सप्रेस से भी ज्यादा तेज़ नहीं है। यही विडंबना है दुनिया की सबसे उन्नत तकनीक, लेकिन पुराने और धीमे सिस्टम की।
वंदे भारत की खासियतें
वंदे भारत एक्सप्रेस अपने बाहरी और आंतरिक डिज़ाइन से लोगों को आकर्षित करती है। इसके सामने का हिस्सा एरोडायनामिक है, सीटें हवाई जहाज जैसी आरामदायक हैं और वाई-फाई और आधुनिक इंटीरियर्स उपलब्ध हैं। यात्रियों को ट्रेन में बैठकर सेल्फी लेने और सफर का आनंद लेने का मौका मिलता है। फरवरी 2019 में इसके उद्घाटन के बाद अब तक 2.5 करोड़ से अधिक लोग इस ट्रेन में यात्रा कर चुके हैं।
16 कोच वाली एक ट्रेन की कीमत अब 115 करोड़ से 134 करोड़ रुपये तक है जो सामान्य ट्रेनों से कई गुना अधिक है। भारत में आज 78 जोड़ी वंदे भारत ट्रेनें चल रही हैं, लेकिन सरकार का लक्ष्य 2047 तक 4,500 जोड़ी ट्रेनें चलाना है और इसके लिए अरबों रुपये निवेश किए जा रहे हैं। परीक्षण दौर में ट्रेन ने 183 किमी/घंटा की रफ्तार भी पकड़ी, जो ‘मेक इन इंडिया’ इंजीनियरिंग का उदाहरण है।
असली समस्या: धीमे ट्रैक
हालांकि वंदे भारत तकनीकी रूप से तेज है, लेकिन वास्तविक यात्रा में इसकी औसत रफ्तार कम है। 2020-21 में इसकी औसत रफ्तार 84.5 किमी/घंटा थी, जो 2023-24 में घटकर 76.25 किमी/घंटा हो गई।
रूट के हिसाब से गति में फर्क होता है। दिल्ली-वाराणसी सेवा में औसत गति 95 किमी/घंटा है, लेकिन कोयंबटूर-बेंगलुरु वंदे भारत केवल 58 किमी/घंटा की औसत गति से चलती है,यह कई सामान्य एक्सप्रेस से भी धीमी है। दिल्ली-आगरा के कुछ हिस्सों में ट्रेन 160 किमी/घंटा तक जाती है, लेकिन कुछ ही समय बाद ब्रेक लगाना पड़ता है।
ट्रैक तकनीक में पिछड़ापन
असल कारण है कि ट्रैक की तकनीक और अपग्रेड वंदे भारत के साथ कदम नहीं मिला पाई। भारत के 90% से अधिक रेलवे नेटवर्क की अधिकतम गति केवल 110 किमी/घंटा है। मोड़, ढलान और पुल ऐसे बनाए गए हैं कि तेज़ गति के लिए उपयुक्त नहीं हैं। कई सालों के अपग्रेड और घोषणाओं के बावजूद कोई भी मार्ग पूरी तरह 160 किमी/घंटा की रफ्तार के लिए तैयार नहीं है।
अनियमितता, रखरखाव और सिंगल लाइन पर मालगाड़ी और धीमी यात्री ट्रेनें, सभी मिलकर तेज ट्रेन की गति को बाधित करती हैं। ग्वालियर-झांसी मार्ग पर वंदे भारत केवल आधे मार्ग पर ही 130 किमी/घंटा तक जा पाती है, बाकी समय यह 94-97 किमी/घंटा की रफ्तार पर सीमित रहती है। मार्च 2025 तक रेलवे नेटवर्क में लगभग 17,000 स्पीड प्रतिबंध थे।
सुरक्षा मुद्दे
भारत में अधिकांश रेलवे नेटवर्क अब भी बिना बाड़ के है, जो खेतों, गांवों और भीड़भाड़ वाले इलाकों से होकर गुजरता है। गाय-बकरी और लोग ट्रैक पर आसानी से चलते हैं। मोहम्मद जमशेद, पूर्व रेलवे बोर्ड सदस्य, कहते हैं, “150 किमी/घंटा से तेज़ ट्रेन चलाना सुरक्षा की दृष्टि से खतरनाक है। इसके लिए बाड़, ऑटोमैटिक सिग्नलिंग, एंटी-कोलिजन डिवाइस, ग्रेड सेपरेटर और ऑटोमैटेड मेंटेनेंस जरूरी हैं।”
भारी निवेश, कम गति
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार के तहत भारतीय रेलवे ने तेज़ गति वाले सेक्शन (130 किमी/घंटा और अधिक) में भारी निवेश किया। 2014 में 5,036 किमी ट्रैक उच्च गति के लिए उपयुक्त था, जो 2025 में बढ़कर 23,010 किमी हो गया। बाड़ 3,500 किमी लगाई गई, 12,000 लेवल क्रॉसिंग हटाई गई और 1,465 किमी पर कवच सुरक्षा प्रणाली लागू की गई। लेकिन फायदे मिश्रित रहे।
पहले ट्रैक, फिर ट्रेन
वंदे भारत की औसत गति कई कारकों पर निर्भर करती है: ट्रैक संरचना, ढलान, मोड़, टोपोग्राफी, स्टॉपेज, लाइन क्षमता, रखरखाव आदि। 2024 के PwC रिपोर्ट के अनुसार, “वंदे भारत की क्षमता ट्रैक की उपलब्धता पर निर्भर करती है।”
विदेश से सीख
ब्रिटेन में 200 किमी/घंटा की ट्रेनें 70 साल पुराने ट्रैक पर भी चलती हैं। फर्क सिर्फ ट्रेन में नहीं, बल्कि ट्रैक, सुरक्षा और सिस्टम अपग्रेड में है। भारत में वंदे भारत एक्सप्रेस अगर ट्रैक, सिग्नलिंग और सिस्टम अपग्रेड के बराबर निवेश नहीं मिला, तो यह केवल खोई हुई संभावना की प्रतीक बन सकती है। सवाल यह नहीं है कि ट्रेन तेज़ चल सकती है, बल्कि यह है कि भारतीय रेलवे उसे तेज़ चलाने देगी या नहीं।
