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मृत्यु के बाद आत्मा कहाँ रहती है? ‘तिब्बती बुक ऑफ द डेड’ का रहस्य

04 जुलाई 2025 ये बात हमेशा से कौतुहल की रही है कि मृत्यु के बाद आखिर होता क्या है. आत्मा का क्या होता है. ये कहां जाती है. कहां रहती है. यानि मृत्यु के बाद आत्मा किस तरह एक रहस्यपूर्ण यात्रा करती है. तिब्बती बौद्ध धर्म की किताब तिब्बती बुक ऑफ डेड में इसके बारे में बहुत विस्तार से लिखा है. आत्मा की इस यात्रा को तिब्बती बौद्ध धर्म में बार्डो थोदोल कहते हैं.

तिब्बती बुक ऑफ द डेड के अनुसार, मृत्यु के बाद आत्मा 49 दिनों तक बार्डो में भटकती है. फिर अपने कर्मों के अनुसार नया जन्म लेती है.

मृत्यु के बाद आत्मा का क्या होता है, ये सवाल आज से नहीं सदियों से कौतुहल और रहस्य बना हुआ है. तिब्बती बौद्ध धर्म में इसका विस्तार से वर्णन किया गया है. इसे “बार्डो थोदोल” (तिब्बती बुक ऑफ द डेड) के नाम से जाना जाता है. ये ग्रंथ है जो मृत्यु के बाद की यात्रा का वर्णन करता है. तिब्बती बौद्ध धर्म के अनुसार मृत्यु के बाद बहुत कुछ होता है. आत्मा को तमाम चरणों से गुजरना होता है. इसके बाद ही उसका अगला जन्म भी तय होता है.

तिब्बती बौद्ध धर्म में मृत्यु क्या है

तिब्बती बौद्ध धर्म के अनुसार, मृत्यु शरीर का अंत नहीं, बल्कि आत्मा के एक नए जन्म की शुरुआत है. यहां पुनर्जन्म का मतलब फिर से संसार में आना है और मोक्ष का मतलब जन्म के बंधन से निकल जाना है. तिब्बती बुक ऑफ द डेड कहती है, मृत्यु के बाद आत्मा एक “बार्डो” (मध्यवर्ती अवस्था) से गुजरती है, जो अगले जन्म तक की यात्रा है.बार्डो थोदोल में इसे बहुत तरीके से समझाया गया है.

मृत्यु के बाद कितनी देर में शरीर से निकलती है आत्मा

तिब्बती बौद्ध धर्म की “बार्डो थोदोल” (तिब्बती बुक ऑफ द डेड) के अनुसार, शरीर से आत्मा के पूरी तरीके से निकलने की प्रक्रिया जटिल है और कई स्तर में होती है. ये पूरी प्रक्रिया आमतौर पर 3 से 4 दिन तक चलती है. कुछ विशेष परिस्थितियों में यह अवधि भिन्न हो सकती है.

आत्मा के निकलने की समय और चरण

1. पहला चरण: शारीरिक मृत्यु के तुरंत बाद (0-30 मिनट). श्वांस रुकने के बाद भी चेतना शरीर में रहती है. तिब्बती परंपरा के अनुसार, इस समय मृतक को कोई छूए नहीं (विशेषकर सिर को), क्योंकि इससे आत्मा को पीड़ा हो सकती है. इस अवस्था में मृतक को “महाशून्यता का प्रकाश” दिखाई देता है. यदि वह इसे पहचान ले तो मुक्ति संभव है.

2. दूसरा चरण: ऊर्जा केंद्रों का विघटन (30 मिनट से 3 दिन). आत्मा धीरे-धीरे शरीर के ऊर्जा केंद्रों (चक्रों) से निकलती है. तिब्बती ग्रंथों में वर्णित है कि चेतना सबसे पहले मूलाधार चक्र से निकलती है. फिर ऊपर की ओर बढ़ती हुई सहस्रार चक्र से बाहर निकलती है. इस पूरी प्रक्रिया में 3 दिन तक का समय लग सकता है.

3. तीसरा चरण: पूर्ण विछेदन (3-4 दिन बाद) . तीसरे या चौथे दिन आत्मा पूरे तरीके से शरीर छोड़ देती है. इसके बाद ही चोनीद बार्डो (मृत्यु के बाद की अवस्था) शुरू होती है, जहाँ आत्मा को विभिन्न दिव्य दृश्य दिखाई देते हैं.

अचानक हुई मृत्यु (जैसे दुर्घटना) में आत्मा को अधिक समय लग सकता है. शांतिपूर्वक हुई मृत्यु में प्रक्रिया तेज होती है. जो लोग शरीर से अत्यधिक जुड़े होते हैं, उनकी आत्मा को निकलने में अधिक समय लगता है.

तिब्बती परंपरा में मृत्यु के बाद क्या होता है

मृतक के शरीर को कम से कम 3 दिन तक अछूता रखा जाता है. इस दौरान लामाओं द्वारा बार्डो थोदोल पढ़ा जाता है ताकि आत्मा को सही मार्गदर्शन मिले. 49वें दिन तक विशेष अनुष्ठान किए जाते हैं.

मृत्यु के बाद कितनी अवस्थाओं से गुजरती है आत्मा

बार्डो थोदोल एक प्राचीन तिब्बती ग्रंथ है, जिसका अर्थ है “मृत्यु की मध्यवर्ती अवस्था से मुक्ति का सूत्र”. इसे 8वीं शताब्दी में गुरु पद्मसंभव द्वारा लिखा गया था. बाद में तिब्बती विद्वान कर्मलिंगपा ने इसे संकलित किया. तिब्बती बौद्ध धर्म के अनुसार,जीवन और मृत्यु के दौरान आत्मा छह बार्डो यानि मध्यवर्ती अवस्थाओं से गुजरती है.

शिक्यी बार्डो (जीवन की अवस्था) – यह वर्तमान जीवन की अवस्था है, जहां व्यक्ति धर्म और कर्म के अनुसार अपना भविष्य तय करता है.
मिलम बार्डो (स्वप्न अवस्था) – सपनों की दुनिया, जहां मन की गहरी अवस्थाएं जाहिर होती हैं.
समतेन बार्डो (ध्यान की अवस्था) – गहन ध्यान या मृत्यु के निकट की अवस्था.
चिक्हाई बार्डो (मृत्यु का क्षण) – जब शरीर से आत्मा अलग हो जाती है, जहां “महाशून्यता” का अनुभव होता है.
चोनीद बार्डो (धर्मता का बार्डो) – मृत्यु के बाद की अवस्था, जहां आत्मा को शुद्ध प्रकाश दिखाई देता है.
सिदपा बार्डो (जन्म की ओर अग्रसर अवस्था) – नए जन्म की तैयारी, जहां कर्म के अनुसार अगला जीवन तय होता है.

मृत्यु के बाद क्या होता है

तिब्बती बौद्ध धर्म की “बार्डो थोदोल” (तिब्बती बुक ऑफ द डेड) के अनुसार, मृत्यु के बाद आत्मा एक मध्यवर्ती अवस्था (बार्डो) से गुजरती है, जो 49 दिनों तक चलती है. इस दौरान आत्मा विभिन्न लोकों में भटकती है और आखिरकार अपने कर्मों के अनुसार नया जन्म लेती है.

मृत्यु के बाद आत्मा की यात्रा के चरण

1. चिक्हाई बार्डो (मृत्यु का क्षण) – 3 से 4 दिन
मृत्यु के तुरंत बाद, आत्मा शरीर छोड़ देती है और “चिक्हाई बार्डो” में प्रवेश करती है. इस अवस्था में व्यक्ति को “शुद्ध प्रकाश” (धर्मधातु का प्रकाश) दिखाई देता है, जो परम सत्य का प्रतीक है. यदि आत्मा इस प्रकाश को पहचान लेती है, तो वह मुक्ति (निर्वाण) प्राप्त कर सकती है. अधिकांश लोग, अज्ञानता के कारण, इस प्रकाश से डर जाते हैं और आगे की यात्रा जारी रखते हैं.

2. चोनीद बार्डो (वास्तविकता का बार्डो) – 14 दिन
यह अवस्था मृत्यु के 3-4 दिन बाद शुरू होती है. करीब 14 दिनों तक चलती है. इस दौरान आत्मा को शांत और क्रोधी देवताओं के दर्शन होते हैं, जो वास्तव में उसके अपने मन के प्रतिबिंब होते हैं. इसमें पहले सात दिन शांत देवी-देवताओं (जैसे अवलोकितेश्वर, मंजुश्री) के दर्शन होते हैं. फिर अगले सात दिन क्रोधी देवताओं (यमराज, भैरव) का सामना होता है, जो भय और आसक्तियों का प्रतीक हैं. यदि आत्मा इन दृश्यों को वास्तविक नहीं समझती और ध्यान से इन्हें पार कर लेती है, तो वह मुक्ति प्राप्त कर सकती है.

3. सिदपा बार्डो (अगले जन्म की ओर जाने की अवस्था) – 21 से 49 दिन
यदि आत्मा चोनीद बार्डो में मुक्ति प्राप्त नहीं कर पाती, तो वह सिदपा बार्डो में प्रवेश करती है, जो 21 से 49 दिनों तक चलता है. इस अवस्था में आत्मा अपने कर्मों के अनुसार अगले जन्म की तैयारी करती है. आत्मा को विभिन्न लोकों (स्वर्ग, नरक, मनुष्य लोक, पशु योनि) के दर्शन होते हैं. जिनकी ओर वह अपने कर्म के अनुसार चली जाती है. 49वें दिन तक, आत्मा को एक नया जन्म मिल जाता है.

आत्मा कहां जाती है?

तिब्बती बुक ऑफ द डेड के अनुसार, मृत्यु के बाद आत्मा का रास्ता उसके कर्म, मन की स्थिति और ध्यान की गहराई पर निर्भर करता है. मध्यम कर्म वाले लोग फिर से मनुष्य योनि में जन्म लेते हैं. लालची और आसक्त लोग प्रेत योनि में फंस जाते हैं. अज्ञानी और हिंसक प्रवृत्ति वाले लोग पशु बनते हैं.घोर पापी आत्माएँ नरक में जाती हैं, जहां उन्हें कष्ट भोगने पड़ते हैं.

आत्मा 49 दिन (7 सप्ताह) तक बार्डो में भटकती है. यह अवधि भ्रूण के गर्भ में विकास (49 दिनों में एक नया शरीर धारण करने) से जुड़ी है. तिब्बती विद्वान मानते हैं कि 49 दिनों तक चेतना पूरी तरह टूटती नहीं, इस दौरान ही अगला जन्म तय होता है.

उच्च लामा मर्जी से पुर्नजन्म लेते हैं जैसे दलाई लामा

तिब्बती बौद्ध धर्म में “फोवा” (चेतना का स्थानांतरण) की एक गोपनीय साधना है, जिसमें योगी मृत्यु के समय अपनी चेतना को शुद्ध भूमि में भेज सकता है.
ऐसा माना जाता है कि कुशल साधक शरीर छोड़ने से पहले ही मुक्ति प्राप्त कर लेते हैं. कुछ लामाओं के शरीर मृत्यु के बाद भी नहीं सड़ते, जिसे “रैनबो बॉडी” (इंद्रधनुषी शरीर) कहा जाता है. तिब्बत में तुल्कु परंपरा है, जहाँ उच्च लामा अपनी मर्जी से पुनर्जन्म लेते हैं. जैसे दलाई लामा. ये लामा बार्डो में अपने अगले जन्म का चुनाव करते हैं. वे अपने पिछले जन्म की यादें रखते हैं और विशेष संकेतों के जरिए अपने पुनर्जन्म की पहचान कराते हैं.

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