30 जून 2025 : हम सभी बचपन से सुनते आए हैं रविवार, सोमवार, मंगलवार, बुधवार… और यूं ही पूरा हफ्ता चलता है, लेकिन क्या आपने कभी रुककर सोचा है कि आखिर हर हफ्ते की शुरुआत रविवार से ही क्यों होती है और उसके बाद सोमवार ही क्यों आता है? क्या कोई वजह है या ये बस यूं ही तय कर दिया गया? इस विषय में अधिक जानकारी दे रहे हैं भोपाल निवासी ज्योतिषी एवं वास्तु सलाहकार पंडित हितेंद्र कुमार शर्मा.
असल में, यह कोई इत्तेफाक नहीं है बल्कि इसके पीछे एक बेहद दिलचस्प और प्राचीन गणना जुड़ी हुई है. चाहे आप भारत में हों, अमेरिका या जापान में, लगभग हर जगह हफ्ते के सात दिनों का क्रम एक जैसा है. आइए समझते हैं इसका असली राज़.
दिन तय हुए ‘होरा’ से
इस रहस्य की शुरुआत होती है वैदिक ज्योतिष से, जहां एक खास शब्द इस्तेमाल होता है होरा. होरा यानी घंटा. हमारे शास्त्रों में हर घंटे का संबंध किसी ग्रह से होता है. यानी हर होरा पर कोई एक ग्रह प्रभाव डालता है. इस आधार पर दिन का नाम तय किया गया है.
जब दिन की पहली होरा सूर्य की मानी गई, तो उसे रविवार कहा गया. अब नियम ये था कि सातों ग्रहों को बारी-बारी से होरा मिलनी चाहिए. सूर्य के बाद चंद्रमा, फिर मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र और फिर शनि. इसी क्रम में अगली सुबह की पहली होरा चंद्रमा की आई. इसलिए वो दिन सोमवार कहलाया.
क्यों नहीं मंगल या बुध?
अब ये सवाल तो ज़रूर उठता है कि अगर सूरज के बाद बृहस्पति बड़ा ग्रह है, तो सोमवार के बजाय बृहस्पतिवार क्यों नहीं आता? या अगर दूरी की बात करें तो बुध, सूरज के सबसे पास है तो रविवार के बाद बुधवार क्यों नहीं आता?तो इसका जवाब भी ‘होरा’ में ही छुपा है, ये क्रम ग्रहों के आकार या दूरी पर नहीं, बल्कि होरा चक्र की गणना पर आधारित है. एक हफ्ते के सात दिन और सात ग्रह सबकी अपनी-अपनी बारी. इस तरीके से पूरे 24 घंटे के हिसाब से जब सात ग्रहों को दोहराया गया, तो सातवां ग्रह अगले दिन की पहली होरा बन गया और इस तरह, दिन का नाम तय हुआ.
पूरी दुनिया में एक जैसा क्यों?
आप सोच सकते हैं कि भारत में तो ज्योतिष चलता है, पर बाकी देशों में भी यही दिन क्यों चलते हैं? दरअसल, ये ज्ञान न सिर्फ भारत में, बल्कि प्राचीन रोम और ग्रीस में भी फैल गया था. वहां इसे अपने तरीके से अपनाया गया और धीरे-धीरे पूरी दुनिया ने इसे अपना लिया.
