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सखी से समधन तक: महाभारत के बाद कैसे श्रीकृष्ण और द्रौपदी बन गए समधी

02 जून 2025 : महाभारत की कथा जितनी विराट है, उतने ही गहरे हैं उसके पात्रों के आपसी रिश्ते. उनमें एक अद्भुत और सबसे भावुक रिश्ता है – द्रौपदी और श्रीकृष्ण का. एक तरफ युगों तक संघर्ष करती महिला, दूसरी ओर पूरी सृष्टि का संचालन करते हुए साक्षात सुदर्शनधारी नारायण. द्रौपदी और श्रीकृष्ण के बीच एक गहरी दोस्ती थी. दोनों एक दूसरे को समझते और उसी तरह कार्य भी करते. भगवान श्रीकृष्ण द्रौपदी को सखी कहते थे तो वहीं द्रौपदी श्रीकृष्ण को सखा कहती थीं. लेकिन दोस्ती के अलावा द्रौपदी और श्रीकृष्ण भाई-बहन भी बने और महाभारत युद्ध के बाद समधी और समधन भी बने. आइए जानते हैं महाभारत की यह रोचक कथा…

द्रौपदी ने कृष्ण को स्नेह से बांधा
महाभारत में एक प्रसंग आता है – जब श्रीकृष्ण को युद्ध के दौरान उंगली पर चोट लगती है, तब द्रौपदी अपनी साड़ी फाड़कर उनका खून रोकने के लिए पट्टी बांधती हैं. इस घटना के बाद श्रीकृष्ण ने द्रौपदी को बहन स्वरूप माना था. श्रीकृष्ण प्रतिज्ञा करते हैं कि मैं इस ऋण को किसी भी रूप में चुका दूंगा. शायद वही ऋण चुकाने का समय आया चीरहरण के वक्त, जब पूरे दरबार में द्रौपदी की इज़्जत को तार-तार करने की साजिश रची गई. तब द्रौपदी ने पुकारा – हे केशव! और बिना देरी, कृष्ण ने अपनी माया से उनका चीर बढ़ा दिया.

महाभारत में इस कथा का उल्लेख नही
यह धारणा जुड़ी है कृष्ण के बेटे साम्ब और द्रौपदी की बेटी सुतानु से। कई लोककथाओं और कुछ प्राचीन कथानकों में माना जाता है कि साम्ब ने सुतानु से विवाह किया था। हालांकि, महाभारत के मूल ग्रंथों में इस विवाह का उल्लेख सीमित है या स्पष्ट नहीं, लेकिन लोकमान्यता में यह रिश्ता प्रचलित है इसीलिए लोग कृष्ण और द्रौपदी को समधी कहकर भी संबोधित करते हैं.

इस तरह बने समधी
महाभारत के मूल ग्रंथ में द्रौपदी की केवल 5 संतानों का उल्लेख मिलता है, जो सभी पुत्र हैं. प्रतिविंध्य – युधिष्ठिर का पुत्र, सुतसोम – भीमसेन का पुत्र, श्रुतकर्मा – अर्जुन का पुत्र, शतानीक – नकुल का पुत्र और श्रुतसेन – सहदेव का पुत्र हैं. इन पांचों पुत्रों को उपपांडव कहा जाता है. हालांकि, कुछ लोककथाओं और परंपरागत कहानियों में द्रौपदी की पुत्री सुथनु का उल्लेख भी मिलता है. इन कथाओं के अनुसार, सुथनु युधिष्ठिर की पुत्री थीं और उनका विवाह श्रीकृष्ण और सत्यभामा के पुत्र भानू से हुआ था. यह संबंध द्रौपदी और श्रीकृष्ण को ‘समधी’ बनाता है.

युद्ध के बाद महत्वपूर्ण घटना थी दोनों का विवाह
महाभारत युद्ध के बाद, जब सभी संबंधों की पुनर्स्थापना हो रही थी, तब श्रीकृष्ण और द्रौपदी का ‘समधी’ बनना एक महत्वपूर्ण घटना थी. यह न केवल व्यक्तिगत संबंधों की मजबूती का प्रतीक था, बल्कि यह भी दर्शाता है कि युद्ध के बाद भी प्रेम, मित्रता और पारिवारिक संबंधों की पुनर्स्थापना संभव है. श्रीकृष्ण द्रौपदी को सखि मानते थे. वे उनके संकटमोचक थे, मार्गदर्शक थे और सबसे बड़ी बात – वे बिना शर्त समर्थन देने वाले मित्र थे. कृष्ण का वह संवाद आज भी दिल छू जाता है – “जो अपने लिए नहीं रोई, वो द्रौपदी कृष्ण को पुकारते ही क्यों रोई?” क्योंकि यह कोई साधारण नाता नहीं था. यह विश्वास, श्रद्धा और आत्मीयता का संगम था.

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