चंडीगढ 12 मई 2025 : एक नॉर्मल इंसान की आंख की पुतली के अंदर झांकने पर नीला और हरा रंग जैसा प्रतिबिंब दिखाई देता है, लेकिन रेटिनोब्लास्टोमा में आंख की पुतली में सफेद बिंब दिखता है। वहीं छोटे बच्चों में बोल न पाने की वजह से इस बीमारी का पता देर से चलता है, जिस वजह से इलाज में देरी हो जाती है। डाक्टरों की मानें तो जितनी जल्दी इस बीमारी का डायग्रोस होगा, उतना इलाज आसान हो जाता है और आंख निकालने से बचाई जा सकती है। जी.एम.सी.एच. आई विभाग की प्रो. सुबिना नारंग की मानें तो यह 2 से 5 साल के बच्चों में होने वाली यह एक रेयर और खतरनाक बीमारी है। मई का महीना इस बीमारी की जागरूकता का होता है। आज भी लोगों को इस बीमारी के बारे में ज्यादा जागरूकता नहीं है।
रेटिनोब्लास्टोमा एक गंभीर बीमारी जरूर है, लेकिन इसका इलाज संभव है। यह आंखों का एक ऐसा कैंसर है, जो अगर समय पर पहचाना न जाए तो बच्चे की जान और आंखों की रोशनी दोनों के लिए खतरा बन सकता है। इस कैंसर की चार स्टेज होती है, जिसमें शुरूआती चरण में कैंसर आंख के अंदर उसके बाद आंख के बाहर और फिर पूरे शरीर में फैल जाता है। जन्म से ही होनी वाली इस बीमारी में अगर बच्चे को इलाज के लिए पहली स्टेज में ही लाया जाए तो उसका इलाज आसान होता है, लेकिन अगर बच्चों को देरी से लाया जाए तो जान बचाने के लिए उसकी आंख निकालनी पड़ती है। जी.एम.सी.एच. में ब्रेकी थैरेपी शुरू हुए काफी वक्त हो चुका है। सही और समय पर इलाज के साथ बड़ा ट्यूमर भी अच्छी दृष्टि प्राप्त कर सकता है।
समय पर पहचान जरूरी
डॉक्टरों का कहना है कि इस बीमारी का समय पर पता न लगने से स्थिति गंभीर हो जाती है। ऐसे में आंखों को बचाना मुश्किल हो जाता है। हालांकि, आधुनिक चिकित्सा तकनीकों से अब इसका इलाज पहले से कहीं अधिक प्रभावी हो गया है। पिछले कुछ सालों में इलाज में कई बदलावों से रेटिनोब्लास्टोमा से निपटने में काफी मदद मिली है। पहले जहां इस बीमारी से जीवित रहने की दर सिर्फ 65 प्रतिशत थी, वहीं अब यह आंकड़ा लगभग 100 प्रतिशत तक पहुंच चुका है।
इलाज के आधुनिक विकरण
इन्ट्रा-आर्टेरियल की मोथेरेपी, सीधे आंख की नसों में दवा देकर ट्यूमर को कम करना।
लोकलाइज्ड रेडियोथेरेपी, ट्यूमर पर सीधे रेडिएशन देकर उसे नष्ट करना।
क्रायोएब्लेशन, ट्यूमर को ठंडा करके खत्म करना।
थर्मोथेरेपी, ट्यूमर को गर्म करके नष्ट करना।
ब्रेकी थेरेपी, आंख में रेडियोएक्टिव सीड डालकर ट्यूमर को नष्ट करना।
समय पर इलाज से बढ़ी उम्मीद
आंखों को बचाने की संभावना छोटे ट्यूमर के लिए लगभग 100 प्रतिशत है, जबकि गंभीर स्थिति में यह 50 प्रतिशत तक होती है। इसलिए शुरुआती पहचान बेहद जरूरी है।
मोबाइल फोटो से पहचान
आजकल हर माता-पिता के हाथ में स्मार्टफोन है और बच्चे के हर छोटे-बड़े पल को कैमरे में कैद करना एक आम बात हो गई है। ऐसे में अगर अंधेरे में ली गई तस्वीर में बच्चे की आंखों में सफेद चमक दिखे, तो इसे नजर अंदाज न करें। यह रेटिनोब्ला स्टोमा का संकेत हो सकता है। कुछ मोबाइल ऐप भी इस सफेद चमक का पता लगाने में मदद कर सकते हैं। रेटिनोब्लास्टोमा को लेकर समाज में कई भ्रांतियां और गलतफहमियां हैं। कई बार माता-पिता इस समस्या को गंभीरता से नहीं लेते, जिससे इलाज में देरी होती है। इसलिए माता-पिता के साथ-साथ प्राथमिक स्कूल के शिक्षकों और पहले संपर्क में आने वाले डॉक्टरों को भी इसके प्रति जागरूक होना चाहिए। नारंग कहती है कि जीएमसीएच में रेटिनोब्लास्टोमा के इलाज के लिए विशेष सुविधाएं उपलब्ध हैं। यहां के आई विभाग में इस बीमारी के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए कई गतिविधियां आयोजित की जा रही हैं। हमारा मकसद समाज में जागरूकता फैलाना है ताकि बच्चे समय पर इलाज पा सकें और उनके जीवन को बचाया जा सके।
यह है रेटिनोब्लास्टोमा
रेटिनोब्लास्टोमा एक प्रकार का आंखों का कैंसर है, जो आमतौर पर छोटे बच्चों में पाया जाता है। यह बीमारी बच्चों की आंख के रेटिना (परत) को प्रभावित करती है। यदि परिवार में पहले किसी को यह बीमारी हो चुकी है तो बच्चों में इसके होने की संभावना बढ़ जाती है। रेटिनोब्लास्टोमा का शुरुआती संकेत आंखों में सफेदचमक होती है। इसे कभी-कभी अंधेरे में या मोबाइल फोन के फ्लैश में देखा जा सकता है। इसके अलावा आंखों में तिरछापन (भेंगापन), आंखों का बाहर निकलना, लालिमा और दृष्टिहीनता जैसी समस्याएं भी इसके संकेत हो सकते हैं।
लक्षणों को न करें अनदेखा
आंखों में सफेद चमक
आंखों का बाहर आना
आंखों में लालिमा
धुंदला दिखना
भेंगापन
