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महाशिवरात्रि: शिव परिवार के इन संदेशों को समझें, तभी होगा कल्याण

25 फरवरी 2025 : सनातन मान्यता की चार महारात्रियों में महाशिवरात्रि भी है.सभी को पता है कि फाल्गुन की शिवरात्रि को सगुण शिव ने पार्वती से विवाह किया था.सगुण शिव इसलिए क्योंकि निर्गुण शिव तो माया की शक्ति के साथ मिलकर ही सारे जगत समेत ब्रह्मा और विष्णु के भी रचयिता हैं.उन्होंने ये सब जगत के सुगमता के लिए किया है.लेकिन शिव का जो रूप हिंदू धर्मग्रंथों में दिखाया गया है वो अपने आप में अनूठा है.सारी साज-सज्जा के साथ जब शिव परिवार को देखा जाता है तो खुद-ब-खुद सहिष्णुता, समरसता और एक-दूसरे का आदर करने वाला आदर्श परिवार ही दिखता है.

शिकारी और शिकार साथ-साथ
जिन जंगली जानवरों का समाज में आना ही डर पैदा कर देता है, वे सब शिवजी से लिपटे रहते हैं.बिच्छू उनके कानों में कुंडल की तरह लटकते हैं तो विषधर सांप दिव्य माला की तरह लिपटे रहते हैं.खुद बैल पर सवारी करते हैं तो उनकी पत्नी सती की सवारी शेर है.परिवार के बाहर होने पर बैल शेर का भोजन होता है.एक पुत्र गणेश चूहे की सवारी करते हैं तो दूसरे मोर की.मोर को खाने में सांप पसंद है और सांप चूहा खाकर संतुष्ट होता है.ये ऐसा परिवार है जहां शिकारी और शिकार एक साथ रहते हैं.सबका सह-अस्तित्व है.

सह अस्तित्व से कल्याण यानी शिव संभव
प्रतीक के तौर पर इसे समझा जाए तो शिव यानी कल्याण भी तभी हो सकता है जब सह-अस्तित्व हो.जियो और जीने दो की भावना से ही कल्याण संभव है.शिव परिवार के इस प्रतीक को समझ लेना इस कारण भी आसान है कि उनके गण हर तरह के जीव-जंतु हैं.महाशिवरात्रि को जब शिव विवाह के लिए निकलते हैं तो उनके साथ सब होते हैं.ऐसे-ऐसे भी जिन्हें शादी-बारात में लोग अब अपशगुन मानते हैं.उनकी बारात का वर्णन करते हुए गोस्वामी तुलसीदास लिखते हैं

इस चौपाई का मायने है कि बारात में कोई बिना मुंह वाला है तो किसी के कई मुंह हैं.कोई बिना हाथ-पैर का है तो किसी के कई हाथ-पैर हैं.किसी के बहुत आँखें हैं तो किसी के एक भी आँख नहीं है.कोई बहुत मोटा-ताजा है, तो कोई बहुत ही दुबला-पतला है.

ऐसा नहीं है कि इस बारात में सिर्फ मानव और प्रेत योनि से ही हैं.दूसरे जानवरों को भी शामिल किया गया है.इसका वर्णन करते हुए तुलसी बाबा लिखते हैं –

तन कीन कोउ अति पीन पावन कोउ अपावन गति धरें.
भूषन कराल कपाल कर सब सद्य सोनित तन भरें.
खर स्वान सुअर सृकाल मुख गन बेष अगनित को गनै.
बहु जिनस प्रेत पिशाच जोगि जमात बरनत नहिं बनै.

इस छंद में तुलसीदास ने बताया है कि बारात में शामिल कोई बहुत दुबला तो कोई बहुत मोटा, कोई पवित्र और कोई अपवित्र वेश बनाए हुए है.भयंकर गहने पहने हाथ में कपाल लिए हैं.सबने अपने शरीर में ताजा खून लपेट रखा है.गधे, कुत्ते, सूअर और सियार के से उनके मुख हैं.यहां तक कि हारकर बाबा लिख देते हैं गणों के अनगिनत वेशों को कौन गिने? बहुत प्रकार के प्रेत, पिशाच और योगिनियों की जमात हैं.उनका वर्णन करते ही नहीं बन रहा.

इस वर्णन को पढ़ने के बाद अब अगर शादी-व्याह में किए जाने वाले तमाम कर्मकांड, टोटके बिल्कुल बेमानी से लगते हैं.लगता है कि कल्याण तो सिर्फ सबको समाहित करने में ही है.किसी को नकारने में नहीं है.कल्याण का ये संदेश देने वाली रात्रि हिंदू मान्यताओं की चार महारात्रियों में शुमार होती है.कुछ लोग इसे माहारात्रि तो कुछ लोग अहोरात्रि कहते हैं.शिव की पूजा करने में भी उन तमाम पूजन सामग्रियों का इस्तेमाल किया जाता है जो किसी और की पूजा में प्रयोग में नहीं लाई जातीं.ये शिवजी ही हैं जिन्होंने समुद्र मंथन से निकले विष को पी लिया और अमृत देवताओं को सौंप दिया था.यहां भी वही संदेश है कि कष्ट अपने पर लेकर आनंद बाँट दिया जाए.यही वजह है कि स्वयंभू शिव हर रूप में सर्वश्रेष्ठ हैं, चाहे साकार मानें या निराकार. इस बार शिवरात्रि बुधवार 26 फरवरी को है. इसी दिन प्रयागराज महाकुंभ का आखिरी स्नान पर्व है और काशी विश्वनाथ में दर्शन के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु जुट रहे हैं. शिवजी की पूजा के साथ उनको लेकर हिंदू धर्म के इस संदेश भी समझना चाहिए.

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