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हिंदू विवाह के 8 प्रकार: आचार्य ने लव मैरिज पर दी बड़ी सलाह

खरगोन 09 फरवरी 2025: हिंदू धर्म में विवाह के दौरान अलग-अलग समाजों में विभिन्न रीति-रिवाज और परंपराएं निभाई जाती हैं. शास्त्रों में विवाह को पवित्र संस्कार माना गया है, जो 16 संस्कारों में से एक है. हालांकि, विवाह के कई प्रकार भी शास्त्रों में वर्णित हैं. इनमें ब्रह्म, दैव, आर्ष, प्राजापत्य, असुर, गंधर्व, राक्षस एवं पैशाच प्रमुख विवाह है. लेकिन, क्या आप जानते हैं कि विवाह के इन तरीकों का महत्व क्या है और कौन सा विवाह करना सही है?

लोकल 18 से बातचीत में मध्य प्रदेश के खरगोन निवासी प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य, गोल्ड मेडलिस्ट, डॉ. बसंत सोनी बताते हैं कि हिंदू धार्मिक शास्त्रों में विवाह के रीति-रिवाजों सहित आठ प्रकार के विवाह बताए गए हैं. इनमें से ब्रह्म, देव, आर्ष और प्रजापत्य विवाह को श्रेष्ठ माना गया, जबकि असुर, गांधर्व, राक्षस और पैशाच विवाह को अच्छा नहीं माना गया है.

विवाह के 8 प्रकार
मनुस्मृति, याज्ञवल्क्य स्मृति और पराशर स्मृति सहित अन्य शास्त्रों के मुताबिक, ज्योतिषाचार्य से उदाहरण सहित आसान भाषा में समझें आठ प्रकार के विवाह और उनके अर्थ.

1. ब्रह्म विवाह: जब कन्या का विवाह अच्छे कुल और उत्तम चरित्र वाले वर से उसकी सहमति से वैदिक रीति-रिवाजों के अनुसार किया जाता है, तो उसे ब्रह्म विवाह कहते हैं. इसमें किसी तरह की जबरदस्ती नहीं होती और शुभ मुहूर्त देखकर विवाह संपन्न होता है. उदाहरण: राम-सीता विवाह, जिसमें राजा जनक ने अपनी बेटी सीता का विवाह उसकी सहमति से वैदिक रीति रिवाजों से किया था.

2. देव विवाह: जब किसी धार्मिक यज्ञ के दौरान योग्य ब्राह्मण (ऋत्विज) को सम्मान पूर्वक कन्या प्रदान की जाती है, तो इसे देव विवाह कहा जाता है. इसमें कन्या को किसी धार्मिक उद्देश्य, सेवा या पुण्य कार्य के लिए सौंपा जाता है.
उदाहरण: भगवान राम की बड़ी बहन शांता का विवाह ऋषि श्रृंग से देव विवाह के ज़रिए ही हुआ था.

3. आर्ष विवाह: इस विवाह में वर, कन्या के परिवार को बदले में गाय और बैल प्रदान करता है. यह लेन-देन धर्म से प्रेरित होता है, इसलिए इसे आर्ष विवाह कहा जाता है. यह विवाह ऋषियों की परंपरा से जुड़ा हुआ माना जाता है. यह तरीका कुछ आदिवासी जातियों से भी जुड़ा है.
उदाहरण: किसी आश्रम में रहकर शिक्षा लेने वाला युवक अपने ही गुरु की बेटी से विवाह करता है तो उसे आर्ष विवाह कहते हैं.

4. प्रजापत्य विवाह: इस विवाह में पिता कन्या को वर के साथ यह कहकर विदा करता है कि “तुम दोनों मिलकर धर्मपूर्वक गृहस्थ जीवन का पालन करो” यह विवाह गृहस्थ धर्म को मजबूत करने वाला माना जाता है. इससे उत्पन्न संतान को पवित्र और सद्गुणी कहा गया है. इस विवाह में न तो कोई लेन-देन होता है और न कोई विशेष धार्मिक अनुष्ठान होता है.

5. असुर विवाह: जब वर, कन्या के परिवार को धन या अन्य संपत्ति देकर विवाह करता है, तो इसे असुर विवाह कहते हैं. इसमें कन्या की इच्छा या अनिच्छा का ध्यान नहीं रखा जाता, इसलिए इसे निंदनीय माना गया है.
उदाहरण: एक अमीर व्यक्ति ने किसी गरीब परिवार को धन देकर उनकी बेटी से विवाह कर लिया, भले ही वह बेटी इस विवाह के लिए तैयार न हो.

6. गंधर्व विवाह: जब वर और कन्या अपनी मर्जी से बिना किसी धार्मिक अनुष्ठान के विवाह कर लेते हैं, तो इसे गंधर्व विवाह कहा जाता है. यह आज के प्रेम विवाह (love marriage) के समान है. शास्त्रों में इसे न तो श्रेष्ठ और न ही पूरी तरह निंदनीय माना गया है.
उदाहरण: शकुंतला और राजा दुष्यंत ने एक-दूसरे को पसंद करने के बाद बिना किसी सामाजिक रीति-रिवाज के विवाह कर लिया. इसमें माता-पिता या समाज की सहमति नहीं थी.

7. राक्षस विवाह: यदि किसी कन्या का अपहरण कर, उसे धमकी देकर या बलपूर्वक विवाह किया जाए, तो इसे राक्षस विवाह कहते हैं. इसमें कन्या की सहमति नहीं होती.

8. पैशाच विवाह: जब कोई व्यक्ति नशे में धुत, मानसिक रूप से कमजोर, सोई हुई या अचेत कन्या का शोषण कर उससे विवाह करता है, तो इसे पैशाच विवाह कहा जाता है. इसे सभी प्रकार के विवाहों में सबसे अधम और पापपूर्ण माना गया है.

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