• Fri. Dec 5th, 2025

मेघालय की रहस्यमयी चट्टान, कर्नाटक के राज्यपाल ने किया दर्शन

मांड्या 05 फरवरी 2025 : कर्नाटक के मांड्या की इस चट्टान में ऐसा क्या खास है, जो कभी-कभी इतिहास की गलियों में झांकने से ऐसे किस्से मिल जाते हैं, जो न सिर्फ चौंकाते हैं बल्कि दिल को भी छू लेते हैं. ऐसी ही एक कहानी है भक्त कनकदास की, जिन्होंने अपनी आस्था की ताकत से समाज की रूढ़ियों को चुनौती दी और एक अद्भुत मिसाल कायम की.

चलिए, थोड़ा पीछे चलते हैं – 16वीं शताब्दी में. कनकदास, जो श्रीरंगपट्टण के आदिरंग, शिवनासमुद्र के मध्यरंग और तमिलनाडु के अंत्यरंग के दर्शन के लिए निकले थे, महादेवपुरा में कुछ समय के लिए रुके. भगवान श्रीरंगनाथ की भक्ति में लीन, उन्होंने वहां एक प्रसिद्ध कीर्तन गाया –
“इन्नेस्तु काल नीनिल्ली मलगीद्रू निन्ननेब्बिसुवरु यारु रंगनाथ”
(अर्थात् – हे रंगनाथ! इतने वर्षों से तुम यहां विश्राम कर रहे हो, लेकिन तुम्हें जगाने वाला कौन है?)

अब कहानी में आता है एक दिलचस्प मोड़!
कनकदास को अपनी यात्रा जारी रखनी थी, लेकिन रास्ते में आई कावेरी नदी. उस समय, समाज में जातिगत भेदभाव बहुत गहरा था. जब कनकदास नदी पार करने के लिए नाव पर चढ़ने लगे, तो नाविक ने उन्हें रोक दिया. वजह? वो शूद्र जाति से थे.

अब कोई और होता, तो शायद मायूस होकर लौट जाता, लेकिन नहीं, कनकदास ठहरे अनोखे इंसान. उन्होंने हार नहीं मानी. केले के पत्ते को नाव बनाया, हरिनाम का जाप करते हुए पानी में उतर गए और खुद ही नदी पार करने का फैसला किया.

और फिर जो हुआ, वो चमत्कार से कम नहीं
कहते हैं, जब कनकदास नदी पार कर रहे थे, तो बीच में एक चट्टान आई. उन्होंने उस पर बैठकर अपने कपड़े साफ किए, थोड़ी देर ध्यान लगाया और फिर आगे बढ़ गए. यही चट्टान बाद में “कनकन बंडे” के नाम से प्रसिद्ध हो गई.

बता दें कि हाल ही मे यही चट्टान मेघालय के राज्यपाल चंद्रशेखर एच. विजयशंकर के सपने में आई और उन्होंने बिना देर किए इस पवित्र स्थान का दर्शन किया. इस चट्टान का सपना आने पप मेघालय के राज्यपाल चंद्रशेखर एच. विजयशंकर ने बिना देर किए महादेवपुरा पहुंचे और इस पवित्र स्थान के दर्शन किए.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *