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नागा बाबा शाकाहारी, अघोरी खाते हैं मांस, जानें क्या है खास

20 जनवरी 2025 अघोरी साधु और नागा बाबा में क्या अंतर होता है. नागा का मतलब होता है वो लोग जो कुंडलिनी हठ योग को सिद्ध किए हुए हों , जो ध्यान की बहुत पवित्र एक्सरसाइज है. नागा साधु आदि शंकराचार्य को अपना गुरु मानते हैं. वो दशनामी संप्रदाय से होते हैं. वो ज्यादा जंगलों या सूनसान मंदिरों में रहते हैं या फिर हिमालय के ऊपरी इलाकों में.

नागा बाबा हमेशा कुंभ में जरूर आते हैं और यहां स्नान करते हैं. वह नियमित तौर पर कुंभ में स्नान करते हैं, ये उनके लिए हर 6 से 12 साल पर आने वाले पवित्र अवसर होता है.

वहीं अघोरी शब्द का संस्कृत भाषा में मतलब होता है ‘उजाले की ओर’. साथ ही इस शब्द को पवित्रता और सभी बुराइयों से मुक्त भी समझा जाता है. लेकिन अघोरियों को रहन-सहन और तरीके इसके बिलकुल विरुद्ध ही दिखते हैं.

नागा साधुओं की नियुक्ति एक प्रक्रिया और कड़े प्रशिक्षण के बाद होती है. एक नागा साधु बनने में 12 साल तो लग ही जाते हैं. वो संपत्ति और सुख-सुविधा का पूरी तरह त्याग कर देते हैं. साथ ही उनका नाता समाज और परिवार से भी खत्म हो जाता है. वह धुनी की पूजा करते हैं और फिर इसकी राख को अपने शरीर पर लगा लेते हैं.

नागा साधु आमतौर पर शैव होते हैं – शिव के भक्त होते हैं लेकिन वो गणेश, सूर्य, विष्णु और शक्ति की भी उपासना करते हैं. नागा साधु भिक्षा से मिले खाने को ही खाते हैं और इसके लिए वो केवल सात घरों में ही जाते हैं. वो आमतौर पर शाकाहारी होते हैं.

नागा बाबा को अगर सातों घरों से कोई भिक्षा ना मिले, तो उसे भूखा रहना पड़ता है. जो खाना मिले, उसमें पसंद-नापसंद को नजर अंदाज करके प्रेमपूर्वक ग्रहण करना होता है.
अघोरी का मतलब होता है कि सादगी वाला शख्स या सारे बंधंनों से मुक्त. वह भगवान दत्तात्रेय को गुरु मानते हैं. वो आमतौर पर श्मशान, नदियों के किनारे या फिर भारत और नेपाल के घने जंगलों में रहते हैं. वो कामाख्या मंदिर में होने वाले वाले अंबूबाची मेला में आते हैं. वो तंत्र विद्या में निपुण होते हैं और उन्हें इसकी ट्रेनिंग उनके गुरुओं द्वारा हासिल होती है.

नागा साधु जहां योग का अभ्यास करते हैं तो अघोरी तंत्र मंत्र का अभ्यास करते हैं. ये चिता भस्म लपेटे रखते हैं, काले कपड़े पहनते हैं तो मानव खोपड़ी साथ में रखते हैं. नागा बाबा शरीर पर भस्म लपेटते हैं, जटा होती है. त्रिशुल रखते हैं तो नग्न रहते हैं. हर अघोरी अलग अकेले साधना करता है तो नागा बाबा संगठित समूहों में रहते हैं.

अघोरी खुद को पूरी तरह से शिव में लीन करना चाहते हैं. शिव के पांच रूपों में से एक रूप ‘अघोर’ है. शिव की उपासना करने के लिए ये अघोरी शव पर बैठकर साधना करते हैं. ‘शव से शिव की प्राप्ति’ का यह रास्ता अघोर पंथ की निशानी है. ये अघोरी 3 तरह की साधनाएं करते हैं, शव साधना, जिसमें शव को मांस और मदिरा का भोग लगाया जाता है. शिव साधना, जिसमें शव पर एक पैर पर खड़े होकर शिव की साधना की जाती है और श्मशान साधना, जहां हवन किया जाता है.

अघोरी की महिला साथी हो सकती हैं लेकिन वो परिवार और संपत्ति से विमुख हो चुके होते हैं. वो शव की चिता को दी जाने वाली आग की पूजा करते हैं और इसके लिए गुप्त तांत्रिक संस्कार करते हैं. अघोरी दस महाविद्याओं की पूजा करते हैं. वो शिव के अघोर रूप की उपासना करते हैं. वह सभी तरह का मांस तो खाते हैं बस एक मांस का कभी भूलकर भी भक्षण नहीं करते, ये गौमांस होता है.

अघोरी साधु, जो तंत्र साधना और श्मशान साधना के लिए प्रसिद्ध हैं, आमतौर पर समाज के पारंपरिक नियमों और मर्यादाओं से अलग जीवन जीते हैं. वे कई बार ऐसे आचरण करते हैं जो सामान्य समाज में वर्जित माने जाते हैं, जैसे शव साधना, मानव खोपड़ी का उपयोग. गाय का मांस न खाना उनकी साधना और विश्वासों से जुड़ा होता है.

गाय को हिन्दू धर्म में पवित्र और मां के समान माना जाता है. गाय को गोमाता के रूप में पूजा जाता है. उसे देवी के रूप में देखा जाता है. इसलिए, गाय का मांस खाना धार्मिक मान्यताओं के खिलाफ माना जाता है. गाय को सात्विकता और पवित्रता का प्रतीक माना जाता है. अघोरी साधु भले ही अन्य प्रथाओं में अलग रास्ता अपनाते हों, लेकिन गाय को पवित्र मानने का सिद्धांत वे भी मानते हैं.

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