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पुस्तक समीक्षा: सिलक्यारा के सत्रह दिन – संघर्ष और आशा की एक प्रेरणादायक कहानी

7 दिसंबर 2024 – समाज में घटित घटनाएं और हादसे अक्सर हमारे दिलों को गहरे प्रभावित करती हैं, और जब इन घटनाओं को लेखक अपनी लेखनी के माध्यम से जीवंत करता है, तो पाठक उन घटनाओं के साथ जुड़ जाते हैं। वो 17 दिन—कुमार राजीव रंजन सिंह द्वारा लिखित एक ऐसी पुस्तक है, जो उत्तराखंड के सिलक्यारा सुरंग हादसे पर आधारित है और पाठकों को उस भयानक त्रासदी के हर पल का अनुभव कराती है।

12 नवंबर 2023 की सुबह, जब पूरा देश दीपावली की तैयारियों में व्यस्त था, उत्तरकाशी के धरासू-यमुनोत्री मार्ग पर निर्माणाधीन सिलक्यारा-बड़कोट सुरंग का एक हिस्सा गिर गया, जिसके कारण सुरंग में काम कर रहे 41 मजदूर फंस गए। यह घटना इतनी भीषण थी कि उसने न केवल पूरे देश को झकझोर दिया, बल्कि इसने पूरे देश की निगाहें इस हादसे पर केंद्रित कर दीं। वो 17 दिन इस घटना का विवरण ही नहीं देती, बल्कि मानव धैर्य, जिजीविषा और जीवन के प्रति विश्वास की अनोखी कहानी भी बयां करती है।

इस पुस्तक में कुमार राजीव रंजन सिंह ने उन 17 दिनों का विस्तृत वर्णन किया है, जब रेस्क्यू ऑपरेशन के दौरान हर कठिनाई और चुनौती का सामना किया गया। लेखक ने रेस्क्यू टीमों के प्रयासों, उनके द्वारा सामना की गई समस्याओं, और मजदूरों के जीवन को बचाने के लिए की गई हरसंभव कोशिश को इतने बारीकी से दर्शाया है कि पाठक हर पंक्ति में खुद को जुड़ा हुआ महसूस करते हैं।

विशेष रूप से लेखक ने ‘रैट-होल’ खनन तकनीक और अन्य महत्वपूर्ण प्रयासों का जिक्र किया है, जिससे इस घटनाक्रम को समझना और भी आसान हो जाता है।

इस रेस्क्यू ऑपरेशन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की भूमिका को भी महत्वपूर्ण बताया गया है। प्रधानमंत्री मोदी इस ऑपरेशन पर लगातार नजर बनाए हुए थे, और हर दिन घटनाओं की अद्यतन जानकारी ले रहे थे। मुख्यमंत्री धामी भी स्वयं घटनास्थल पर जाकर स्थिति का जायजा ले रहे थे। इन प्रशासनिक और राजनीतिक प्रयासों के साथ-साथ रेस्क्यू टीम, रैट माइनर्स और मजदूरों की हिम्मत ने मिलकर इस ऑपरेशन को सफल बनाने में अहम भूमिका निभाई।

लेखक की लेखन शैली सीधी, सटीक और संवेदनशील है, जो पाठकों को घटनाओं की गहराई में ले जाती है। उन्होंने घटनाओं का विवरण देते हुए तकनीकी तथ्यों और मानवीय भावनाओं का अद्भुत संतुलन बनाए रखा है। इस पुस्तक में पत्रकारिता का दृष्टिकोण स्पष्ट रूप से दिखाई देता है, जबकि इसे एक रोचक कहानी के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जिससे पाठकों की उत्सुकता हर पन्ने के साथ बढ़ती जाती है।

किताब का संरचनात्मक ढांचा भी बेहद प्रभावशाली है। 22 अध्यायों में बटी यह पुस्तक हर अध्याय के माध्यम से नए दृष्टिकोण से घटनाओं को प्रस्तुत करती है। यह न केवल मजदूरों के संघर्ष और धैर्य को दर्शाती है, बल्कि रेस्क्यू दल के प्रयासों और मानवीय संवेदनाओं को भी बखूबी चित्रित करती है।

समाप्ति में, वो 17 दिन केवल सिलक्यारा सुरंग हादसे का विवरण नहीं है, बल्कि उस त्रासदी से जुड़े हर व्यक्ति के संघर्ष, साहस और प्रयासों को श्रद्धांजलि अर्पित करती है। कुमार राजीव रंजन सिंह ने इस पुस्तक के माध्यम से इस भयंकर घटना को जीवंत किया है, जो पाठकों के दिलों में एक गहरी छाप छोड़ती है। यह पुस्तक न केवल संग्रहणीय है, बल्कि उम्मीद की जाती है कि लेखक भविष्य में इसी तरह की और भी संवेदनशील कृतियां लिखेंगे।

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