मनमोहन सेजू/बाड़मेर 28 नवम्बर 2024 : पहले के जमाने में, जब लोग छप्परों में रहते थे, गोबर और मिट्टी की दीवारों पर डिजाइन उकेरना एक आम बात थी. ये डिजाइन, जिन्हें लिप्पन कला कहा जाता है, देखने में काफी सुंदर और आकर्षक होती थी. ग्रामीण छोटे-छोटे कांच के टुकड़े, माचिस की तिली जैसी चीज़ों का उपयोग करके जानवरों, पेड़-पौधों, या देवी-देवताओं की मूर्तियों के डिजाइन बनाते थे. लोग इस कलाकृति को अपने घरों की दीवारों पर, मिट्टी के बर्तनों पर, या घरों में सजाते थे.
लेकिन जैसे-जैसे लोग आधुनिक होते गए, उन्होंने मिट्टी के घरों को सीमेंट के घरों में बदल दिया, जिससे लिप्पन कला धीरे-धीरे लुप्त होती जा रही है. गुजरात के घरों में लोकप्रिय रही लिप्पन कला अब तेजी से लुप्त हो रही है. इस चित्रकारी का इस्तेमाल ग्रामीण इलाकों में मिट्टी से बनी घर की दीवारों को सजाने में किया जाता था. इसके लुप्त होने का मुख्य कारण तेजी से बढ़ते शहरीकरण के साथ ईट से बने घरों का निर्माण है. लेकिन पश्चिम राजस्थान के सरहदी बाड़मेर जिले में स्कूली छात्र इस विलुप्त होती जा रही कला को जिंदा करने का प्रयास कर रहे हैं. शहर के अजीम प्रेमजी फाउंडेशन के 37 स्कूली बच्चे इसे न केवल धरातल पर उतार रहे हैं, बल्कि लोगों तक भी पहुंचा रहे हैं.
लुप्त होती कला को फिर से जीवित करने का प्रयास
लिपन कला गुजरात के कच्छ का एक पारंपरिक भित्ति शिल्प है. मिट्टी और ऊंट के गोबर के मिश्रण जैसे स्थानीय रूप से उपलब्ध सामग्री का उपयोग करके बनाई गई लिप्पन या मिट्टी की धुलाई घरों के अंदरूनी हिस्सों को ठंडा रखती है. सरहदी बाड़मेर जिले में विलुप्त हो रही संस्कृति को स्कूली छात्र जीवित कर रहे हैं. शिक्षक हरीश कुमार बताते हैं कि 2 साल से वह बच्चों को गुजरात की लिप्पन कला से रूबरू करवा रहे हैं. विलुप्त होती कला को फिर से जीवित कर रहे छात्र भी बहुत उत्साहित हैं.