नई दिल्ली 20 जुलाई: जमीन से जुड़े पारिवारिक वाद में एक व्यक्ति की जमानत याचिका मंजूर करते हुए दिल्ली की रोहिणी (उत्तर) जिला अदालत के न्यायिक मजिस्ट्रेट रोहित कुमार ने रिश्तों की अहमियत पर लिखा है। उन्होंने मानवीय संदर्भ में ये कविता लिखी है।
मजिस्ट्रेट ने लिखा-
मिल्कियत की जंग में ना जाने कितने अफ़साने हुए,
कुछ ही अपने थे, वो भी अब बेगाने हुए।
बन के कृष्ण, अब किसी को आना होगा,
सड़ते, लड़ते, बिगड़ते रिश्तों को बचाना होगा।
ना जाने ये जंग और कितनी महाभारत लाएगी,
आख़िर कितनों को सलाखों तक ले जाएगी।
बनकर बेटी, रिश्तों को बचाना होगा,
सभी नातों को निभाना होगा।
क्या रखा है इस जंग में, कोई बताएगा,
आख़िर इस धरती से कौन क्या ही ले जाएगा।
‘जंग ए मिल्कियत’ नामक कविता से की आदेश की शुरुआत
दिल्ली की रोहिणी कोर्ट के मजिस्ट्रेट रोहित कुमार ने जब अपने आदेश की शुरुआत ‘जंग ए मिल्कियत’ नामक अपनी कविता से की, तो उन्होंने कानूनी प्रक्रिया को एक गहरे मानवीय संदर्भ में रख दिया। उनकी कविता ज़मीन-जायदाद को लेकर बढ़ते पारिवारिक झगड़ों की एक कड़वी हकीकत को छूती है, जहां संपत्ति की लड़ाई रिश्तों की मिट्टी को बंजर बना देती है।
इस कविता में कई मार्मिक बातें हैं। जज रोहित कुमार ने केवल कानून नहीं देखा, बल्कि उन टूटते रिश्तों के दर्द को भी महसूस किया जो अदालतों में अक्सर शब्दों के पीछे छुपा रह जाता है। ये आदेश याद दिलाता है कि न्याय का उद्देश्य केवल विवाद सुलझाना नहीं, बल्कि समाज को बेहतर दिशा देना भी है।
