धर्मशाला.1 जनवरी 2025: हिमाचल प्रदेश जहां अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है. वहीं, यहां की कला और संस्कृति भी देश और दुनिया में मशहूर है. अहम बाद है कि कुल्लू के शॉल, कांगड़ा की पेंटिंग (Kangra Paintings) और चंबा का रुमाल विश्व प्रसिद्ध है. अब ऐसी ही कांगड़ा की दो पेटिंग्स मुंबई में एक प्रदर्शनी में 31 करोड़ रुपये में बिकी हैं. इन दोनों पेटिंग्स को 18वीं सदी में बनाया गया था.
जानकारी के अनुसार 18वीं सदी के कांगड़ा के प्रसिद्ध कलाकार नैनसुख ने एक पेटिंग को बनाया था. वही, दूसरी को भी उन्हीं के अज्ञात वंशज ने कैनवस पर उतरा था. अब कांगड़ा के गुलेर की दो पेंटिंग्स को मुंबई में नीलामी में रिकॉर्ड 31 करोड़ रुपये की कीमत पर खरीदा गया है. हालांकि, बोलीदाता के बारे में जानकारी सार्वजनिक नहीं की गई है.
नैनसुख के वंशज की ओर से बनाई गई भगवान कृष्ण की पेंटिंग ‘गीता-गोविंद’ के लिए 16 करोड़ रुपये की बोली लगाई गई है. उधर, 1750 में बनी नैनसुख की उत्कृष्ट कृति 15 करोड़ रुपये में बिकी और इसमें राजा बलवंत देव को संगीतमय भोज की मेजबानी करते हुए दिखाया गया है. दूसरी कलाकृति 1775 के आसपास बनाई गई थ और इसमें 12वीं शताब्दी के संस्कृत कवि जयदेव की एक पंक्ति है, जिसमें भगवान कृष्ण को वृंदावन के हरे-भरे उपवन में गोपियों के साथ नृत्य करते हुए दिखाया गया है.
चंबा के पद्मश्री सम्मान से नवाजे पहाड़ी कलाकार विजय शर्मा ने क्या बताया?
चंबा के रहने वाले पद्मश्री सम्मान से नवाजे गए पहाड़ी कलाकार विजय शर्मा ने न्यूज18 को फोन पर बचाया कि मुंबई में घर पुंडोले में नीलामी में इन दोनों पेंटिंग की 31 करोड़ रुपये की बोली लगी है. उन्होंने बताया कि हैमिल्टन हाउस में आयोजित नीलामी में कई दुर्लभ पहाड़ी पेंटिंग को शामिल किया गया था. वह कहते हैं कि शायद ही पहले कभी इनती बड़ी कीम पर कोई पहाड़ी पेंटिंग बिकी हो. विजय शर्मा बताते हैं कि इस नीलामी में दिवंगत पूर्व आईएएस अफर एनसी मेहता का निजी संग्रह शामिल था. वह 1950 के दशक में हिमाचल प्रदेश के पहले मुख्य आयुक्त बनाए गए थे. वह कला के शौकीन थे और उन्होंने चंबा, कांगड़ा और मंडी कला शैलियों की पेंटिंग को एकत्र किया था. उनके निधन के बाद उनकी पत्नी पत्नी ने संग्रह का एक हिस्सा अहमदाबाद के लालभाई दलपतभाई संग्रहालय को दान कर दिया था.
उन्होंने बताया कि इससे पहले, मंडी शैली में बनी भगवान कृष्ण और कालिया नाग की पेंटिंग 6 करोड़ रुपये में बोली लगाई गई थी.
क्या कहती हैं आोशीन शर्मा
भाषा कला एंव संस्कृति विभाग में सहायक सचिव ओशीन शर्मा ने न्यूज18 से फोन पर बातचीत में कहा कि उन्हें इस बारे में जानकारी नहीं है. हालांकि, न्यूज-18 के प्रदेश के कई संग्रहालय में इस तरह की पेंटिंग्स को प्रदर्शित करने के बारे में वह कहती हैं कि इस पर सरकार से बातचीत जरूर की जाएगी.
कब हुई थी कला की शुरुआत
माना जाता है कि कांगड़ा के गुलेर में 18वीं शताब्दी में कांगड़ा चित्रकला शैली की शुरुआत हुई थी. माना जाता है कि मुगल चित्रकला शैली के कलाकार कश्मीर के परिवार को राजा दलीप सिंह ने राज्य गुलेर (1695-1741) में शरण दी. यहीं से इस कला का आगाज हुआ था. ज्यादातर कांगड़ा पेंटिंग प्रेम प्रसंग के दृश्य, राधा कृष्ण के प्रेम-प्रसंग ही दिखाए गए. इसके अलावा, दुल्हनों को लेकर भी पेटिंग्स देखने को मिली है. पेटिंग में प्रकृति को भी खूब दिखाया जाता रहा है. बताया जाता है कि कांगड़ा के महाराजा संसार चंद कटोच के शासनकाल में कांगड़ा की चित्रकला बुलंदियों पर पहुंची थी.