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Navratri 2024: नवरात्रि के सातवें दिन मां कालरात्रि की पूजा विधि व मंत्र

Navratri 2024: Maa Kalratri Puja Vidhi and Mantra on the Seventh Day of Navratri

पंजाब 09 अक्टूबर 2024 : देशभर में नवरात्रों का पर्व धूमधाम से मनाया जा रहा है तथा कल नवरात्रि का सातवां दिन हैं, जोकि मां कालरात्रि को समर्पित है। इस दिन मां दुर्गा के कालरात्रि स्वरुप की पूजा-अर्चना की जाती है। मान्यता है कि मां कालरात्रि अपने भक्तों की बुरी शक्तियों से रक्षा करती हैं और उनके मन से मृत्यु के भय को भी दूर करती हैं। नवरात्रि का सावतें दिन मां कालरात्रि की पूजा करने से व्यक्ति के कष्ट दूर होते है।  मां कालरात्रि का वर्ण काला है, तीन नेत्र हैं, केश खुले हुए हैं, गले में मुंड की माला है और वे गर्दभ की सवारी करती हैं। मान्यता है कि मां कालरात्रि की पूजा करने से भय का नाश होता है, सभी तरह के विघ्न दूर हो जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

मां कालरात्रि पूजा विधि  
1. सुबह उठकर स्नान कर साफ सुथरे वस्त्र धारण करें।
2. सबसे पहले कलश का पूजन करें उसके बाद मां के सामने दीपक जलाकर अक्षत, रोली, फूल, फल आदि मां को अर्पित कर पूजन करें।
3. मां को पूजा में गुड़हल या गुलाब के फूल अर्पित करें।
4. इसके बाद दीपक और कपूर से मां की आरती करने के बाद लाल चंदन या रुद्राक्ष की माला से मंत्र जाप करें।
5. आखिर में मां कालरात्रि को गुड़ का भोग लगाए साथ ही गुड़ का दान भी करें।
6. आराधना करने से पहले देवी काली की प्रतिमा के आसपास गंगाजल का छिड़काव करें।
7.  घी का दीपक जलाएं।


मां कालरात्रि का भोग 
कालरात्रि की पूजा के समय देवी मां के इस स्वरूप को गुड़ का भोग लगाना बेहद शुभ माना गया है। इसके अलावा आप माता को गुड़ से बनी मिठाई और हलवा आदि का भी भोग लगा सकते हैं।

मां कालरात्रि के मंत्र  
मां कालरात्रि का प्रार्थना मंत्र

एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता। लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्त शरीरिणी॥
वामपादोल्लसल्लोह लताकण्टकभूषणा। वर्धन मूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयङ्करी॥
मां कालरात्रि की स्तुति मंत्र

या देवी सर्वभूतेषु माँ कालरात्रि रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
मां कालरात्रि का ध्यान मंत्र

करालवन्दना घोरां मुक्तकेशी चतुर्भुजाम्। कालरात्रिम् करालिंका दिव्याम् विद्युतमाला विभूषिताम्॥
दिव्यम् लौहवज्र खड्ग वामोघोर्ध्व कराम्बुजाम्। अभयम् वरदाम् चैव दक्षिणोध्वाघः पार्णिकाम् मम्॥
महामेघ प्रभाम् श्यामाम् तक्षा चैव गर्दभारूढ़ा। घोरदंश कारालास्यां पीनोन्नत पयोधराम्॥
सुख पप्रसन्न वदना स्मेरान्न सरोरूहाम्। एवम् सचियन्तयेत् कालरात्रिम् सर्वकाम् समृध्दिदाम्॥

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