हरियाणा की राजनीति के दिग्गज चेहरों में शुमार इनेलो सुप्रीमो ओमप्रकाश चौटाला सुनहरी यादों के साथ हमें अलविदा कह गए हों, लेकिन उनके राजनीतिक सफर में महम कांड एक ऐसा अध्याय के रूप में जुड़ा, जिसने न सिर्फ उनके सफेद दामन पर दाग लगाया बल्कि उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी तक गंवानी पड़ी। पिता की राजनीतिक विरासत को संभालते हुए पहली बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने वाले चौटाला को ये अंदाजा भी नहीं था कि उन्हें छह महीने से भी कम समय में इस्तीफा देना पड़ेगा। आखिर क्या है वो महम कांड, जिसके कारण चौटाला को एक बार नहीं बल्कि तीन बार मुख्यमंत्री की कुर्सी गंवानी पड़ी थी।
साल 1989 में देश में आम चुनाव संपन्न हुए थे। जनता दल ने राजीव गांधी की अगुवाई वाली कांग्रेस की ताकत सरकार को उखाड़ फेंका था। उस दौरान ताऊ देवीलाल 1987 के हरियाणा विधानसभा चुनाव में प्रचंड जनादेश के साथ बनी अपनी सरकार को आराम से चला रहे थे, लेकिन दिल्ली में हुए सत्ता परिवर्तन के बाद उनका मन केंद्र की राजनीति की ओर डोलने लगा और उनके कद के हिसाब से उन्हें उप प्रधानमंत्री भी बनाया गया। दिल्ली पहुंचे देवीलाल ने चंडीगढ़ की कुर्सी पर अपने सबसे बड़े बेटे ओमप्रकाश चौटाला को बैठाया, जो उस दौरान राज्यसभा सांसद हुआ करते थे। 2 दिसंबर 1989 वो तारीख थी जब चौटाला परिवार की दूसरी पीढ़ी ने हरियाणा के मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी संभाली थी, लेकिन ये राह आगे बहुत कठिन होने वाली थी, क्योंकि ओपी चौटाला को शपथ लेने के छह माह के अंदर विधानसभा का सदस्य चुना जाना जरूरी था। पिता देवीलाल ने अपने हिसाब से सुरक्षित मानी जा रही महम विधानसभा सीट को चुना। महम रोहतक में आता है, जहां देवीलाल ने 1989 के लोकसभा चुनाव में अच्छी जीत दर्ज की थी। हालांकि फिर जो यहां हुआ उसकी शायद ही उन्होंने कल्पना की होगी।
दरअसल महम की खाप पंचायतों ने ओमप्रकाश चौटाला की उम्मीदवारी का विरोध कर दिया। खापों ने कांग्रेस उम्मीदवार आनंद दांगी को अपना समर्थन दे दिया, जिसको लेकर माहौल गरमा गया। उधर चौटाला ने भी अपनी पूरी ताकत झोंक दी। तनाव भरे माहौल में 27 फरवरी 1990 को वोटिंग हुई, जिसमें जमकर बूथ कैप्चरिंग और हिंसा हुई। लिहाजा चुनाव आयोग ने आठ बूथों पर दोबारा वोटिंग कराने के आदेश दिए, जब दोबारा वोटिंग हुई, तो फिर से हिंसा भड़क उठी। चुनाव आयोग ने फिर से चुनाव रद्द कर दिया। 27 मई को फिर से चुनाव की तारीखें तय की गईं, लेकिन वोटिंग से कुछ दिन पहले निर्दलीय उम्मीदवार अमीर सिंह की हत्या हो गई।
अमीर सिंह और आनंद दांगी दोनों एक ही गांव मदीना के थे। बताया जाता है कि चौटाला ने दांगी का वोट काटने के लिए अमीर सिंह को चुनाव में खड़ा करवाया था। इसलिए हत्या का आरोप दांगी पर लगा और पुलिस जब उन्हें गिरफ्तार करने मदीना पहुंची तो भारी बवाल हो गया। पुलिस ने दांगी समर्थकों पर गोली चला दी, जिसमें 10 लोगों की मौत हो गई थी। इस घटना की चर्चा उस वक्त पूरे देश में हुई थी और केंद्र की जनता दल सरकार को काफी असहज स्थिति का सामना करना पड़ा था। आखिरकार भारी दबाव के बीच ओपी चौटाला को सीएम की कुर्सी छोड़नी पड़ी। वो महज साढ़े पांच माह ही मुख्यमंत्री रह पाए। उनकी जगह बनारसी दास गुप्ता ने ली।